________________
१९२]
[उपासकदशांगसूत्र
अष्टांगहृदय में वारूणी का पर्याय प्रसन्ना लिखा है। तदनुसार सुरा का ऊपरी भाग प्रसन्न है। उसके नीचे का गाढ़ा भाग जगल कहा जाता है। जगल के नीचे का भाग मेदक कहा जाता है। नीचे बचे कल्क को निचोड़ने से निकला द्रव बक्कस कहा जाता है।
२४१. तए णं रायगिहे नयरे अन्नया कयाइ घुढे यावि होत्था। एक बार राजगृह नगर में अमारि-प्राणि-वध न करने को घोषणा हुई।
२४२. तए णं सा रेवई गाहावइणी मंस-लोलुया, मंसेसु मुच्छिया ४ कोल-घरिए पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुब्भे, देवाणुप्पिया! मम कोल-घरिएहितो वएहितो कल्लाकल्लि दुवे-दुवे गोण-पोयए उद्दवेह, उद्दवित्ता ममं उवणेह।
गाथापति की पत्नी रेवती ने, जो मांस में लोलुप एवं आसक्त थी, अपने पीहर के नौकरों को बुलाया और उनसे कहा-तुम मेरे पीहर के गोकुलों में से प्रतिदिन दो-दो बछड़े मारकर मुझे ला दिया करो।
२४३. तए णं ते कोल-घरिया पुरिसा रेवईए गाहावइणीए 'तहत्ति' एयमटुं विणएणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता रेवईए गाहावइणीए कोल-घरिएहिंतो वएहिंतो कल्लाकल्लिं दुवे दुवे गोण-पोयए वहेति, वहेत्ता रेवईए गाहावइणीए उवणेति।
पीहर के नौकरों ने गाथापति की पत्नी रेवती के कथन को 'जैसी आज्ञा' कहकर विनयपूर्वक स्वीकार किया तथा वे उसके पीहर के गोकुलों में से हर रोज सवेरे दो बछड़े लाने लगे।
२४४. तए णं सा रेवई गाहावइणी तेहिं गोण-मंसेहिं सोल्लेहि य ४ सुरं च ६ आसाएमाणी ४ विहरइ।
गाथापति की पत्नी रेवती बछड़ों के मास के शूलक-सलाखें पर सेके हुए टुकड़ों आदि का तथा मदिरा का लोलुप भाव से सेवन करती हुई रहने लगी। महाशतक अध्यात्म की दिशा में
२४५. तए णं तस्स महासयगस्स समणोवासगस्स बहूहिं सील जाव भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छरा वइक्वंता। एवं तहेव जेटुं पुत्तं ठवेइ जाव पोसहसालाए धम्मपण्णतिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।
___ श्रमणोपासक महाशतक को विविध प्रकार के व्रतों, नियमों द्वारा आत्मभावित होते हुए चौदह १. वारूणी--प्रसन्ना। वारूण्या अधोभागो घनो जगलः। जगलस्याधो भागो मेदकः। पानीयेन मद्यकल्कपीडनोत्पन्नो बक्कसः।
--अष्टांगहृदय सूत्र स्थान ५, ६८ (टीका)। २. देखें सूत्र-संख्या ११२ ३. देखें सूत्र-संख्या ९२