Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 232
________________ आठवां अध्ययन : महाशतक ] [१९१ मयूर-यंत्र-वाष्प-निष्कासन-यन्त्र द्वारा जब उस का सार चुआ लिया जाता है, वह मद्य है। उसमें मादकता की मात्रा अत्यधिक तीव्रता लिए रहती है। मद्य के निर्माण में गुड़ या खांड तथा रांगजड़ या तत्सदृश मूल-जड़ डालना आवश्यक है आयुर्वेद के ग्रन्थों में जहाँ मदिरा के भेदों का वर्णन है, वहां प्रकारान्तर से ये नाम भी आए हैं, जिनका इस सूत्र में संकेत है। उनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-- सुरा-भावप्रकाश के अनुसार शालि व साठी धान्य की पीठी से जो मद्य तैयार होती है, उसे सुरा कहा जाता है। मधु-वह मद्य जिसके निर्माण में अन्य वस्तुओं के साथ शहद भी मिलाया जाता है । अष्टांगहृदय मैं इसे माधव मद्य कहा गया है । सुश्रुतसंहिता में इसका मध्वासव के नाम से उल्लेख है । मधु और गुड़ द्वारा इसका संधान बतलाया गया है। मेरक-आयुर्वेद के ग्रन्थों में इसका मैरेय नाम से उल्लेख है । सुश्रुतसंहिता में इसे त्रियोनि कहा गया है अर्थात् पीठी से बनी सुरा, गुड़ से बना आसव तथा मधु इन तीनों के मेल से यह तैयार होता है। मद्य-वैसे मद्य साधारणतया मदिरा का नाम है, पर यहां संभवतः यह मदिरा के मार्दीक भेद से सम्बद्ध है। सुश्रुतसंहिता के अनुसार यह द्राक्षा या मुनक्का से तैयार होता है।' सीधु-भावप्रकाश में ईख के रस से बनाए जाने वाले मद्य को सीधु कहा जाता है । वह ईख के पक्के रस एवं कच्चे रस दोनों से अलग-अलग तैयार होता है । दोनों की मादकता में अन्तर होता है।६ प्रसन्न--सुश्रुतसंहिता के अनुसार सुरा का नितरा हुआ ऊपरी स्वच्छ भाग प्रसन्न या प्रसन्ना कहा जाता है। १. शालिषष्टि कपिष्टादिकृतं मद्यं सुरा स्मृता। -भावप्रकाश पूर्व खण्ड, प्रथम भाग, सन्धान वर्ग २३। २. मध्वासवो माक्षिकेण सन्धीयते माधवाख्यो मद्यविशेषः -अष्टांगहृदय ५,७५ (अरूणदत्तकृत सर्वाङ्गसुन्दरा टीका)। ३. मध्वासवा मधुगुडाभ्यां सन्धानम् । __ --सुश्रुतसंहिता सूत्र स्थान ४५, १८८ (डल्हणाचार्यविरचितनिबन्धसंग्रह व्याख्या)। सुरा पैष्टी, आसवश्च गुडयो निः, मधु च देयमिति त्रियोनित्वम् । -सुश्रुतसंहिता सूत्र स्थान ४५, १९० (व्याख्या)। ५. मार्दीकं द्राक्षोद्भवम्। -सुश्रुतसंहिता सूत्र स्थान ४५, १७२ (व्याख्या) ६. इक्षोः पक्वै रसै: सिद्धैः सीधु : पक्वरसश्च सः। आमैस्तैरेव यः सीध: स च शीतरसः स्मृत॥ ___-भावप्रकाश पूर्व खण्ड, प्रथम भाग, सन्धान वर्ग २५ । ७. प्रसन्ना सुराय मण्ड उपर्यच्छो भागः। --सुश्रुतसंहिता सूत्र स्थान ४५.१७७ (व्याख्या)

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