Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आठवां अध्ययन : महाशतक ]
[१९३ वर्ष व्यतीत हो गए। आनन्द आदि की तरह उसने भी ज्येष्ठ पुत्र को अपनी जगह स्थापित कियापारिवारिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्व बड़े पुत्र को सौंपा तथा स्वयं पोषधशाला में धर्माराधना में निरत रहने लगा। महाशतक को डिगाने हेतु रेवती का कामुक उपक्रम
२४६. तए णं सा रेवई गाहावइणी मत्ता, लुलिया, विइण्णकेसी उत्तरिजयं विकड्डमाणी विकड्ढमाणी जेणेव पोसहसाला जेणेव महासयए समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मोहुम्मायजणणाई, सिंगारियाइं इत्थिभावाइं उवदंसेमाणी उवदंसेमाणी महासययं समणोवासयं एवं वयासी-हं भो! महासयया! समणोवासया! धम्मकामया! पुण्ण-कामया! सग्ग-कामया! मोक्ख-कामया! धम्म-कंखिया! ४ धम्मपिवासिया ४, किण्णं तुम्भं, देवाणुप्पिया! धम्मेण वा पुण्णेण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा? जं णं तुमं मए सद्धिं उरालाइं जाव (माणस्साई भोगभोगाई) भुंजमाणे नो विहरसि?
___ एक दिन गाथापति की पत्नी रेवती शराब के नशे में उन्मत्त, लड़खड़ाती हुई, बाल बिखेरे, बार-बार अपना उत्तरीय-दुपट्टा या ओढना फेंकती हुई, पोषधशाला में जहाँ श्रमणोपासक महाशतक था, आई। आकर बार-बार मोह तथा उन्माद जनक, कामोद्दीपक कटाक्ष आदि हाव भाव प्रदर्शित करती हुई श्रमणोपासक महाशतक से बोली-धर्म, पुण्य, स्वर्ग तथा मोक्ष की कामना, इच्छा एवं उत्कंठा रखनेवाले श्रमणोपासक महाशतक! तुम मेरे साथ मनुष्य-जीवन के विपुल विषय-सुख नही भोगते, देवानुप्रिय! तुम धर्म, पुण्य, स्वर्ग तथा मोक्ष से क्या पाओगे-इससे बढ़कर तुम्हें उनसे क्या मिलेगा?
२४७. तए णं से महासयए समणोवासए रेवईए गाहावइणीए एयमटुं नो आढाइ, नो परियाणाइ, अणाढाइजमाणे, अपरियाणमाणे, तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ।
श्रमणोपासक महाशतक ने अपनी पत्नी रेवती की इस बात को कोई आदर नहीं दिया और न उस पर ध्यान ही दिया। वह मौन भाव से धर्माराधना में लगा रहा।
२४८. तए णं सा रेवई गाहावइणी महासययं समणोवासयं दोच्चंपि तच्चंपि एवं वयासी-हं भो! तं चेव भणइ सो वि तहेव जाव (रेवईए गाहावणीए एयमढें नो आढाइ, नो परियाणाइ) अणाढाइज्जमाणे अपरियाणमाणे विहरइ।
उसकी पत्नी रेवती ने दूसरी बार तीसरी बार फिर वैसा कहा। पर वह उसी पकार अपनी पत्नी रेवती के कथन को आदर न देता हुआ, उस पर ध्यान न देता हुआ धर्म-ध्यान में निरत रहा।
२४९. तए णं सा रेवई गाहावइणी महासयएणं समणोवासएणं अणाढाइज्जमाणी, अपरियाणिजमाणी जामेव दिसं पाउब्भूया, तामेव दिसं पडिगया।
यों श्रमणोपासक महाशतक द्वारा आदर न दिए जाने पर, ध्यान न दिए जाने पर उसकी पत्नी रेवती, जिस दिशा से आई थी उसी दिशा की ओर लौट गई।