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[उपासकदशांगसूत्र गया है । कांस्य का अर्थ कांसी से बने एक पात्र-विशेष से है। प्राचीन काल में वस्तुओं की गिनती तथा तौल के साथ-साथ माप का भी विशेष प्रचलन था। एक विशेष परिमाण की सामग्री भीतर समा सके, वैसे माप के पात्र इस काम में लिए जाते थे। यहां कांस्य का आशय ऐसे ही पात्र से है।
महाशतक की सम्पत्ति इतनी अधिक थी कि मुद्राओं की गिनती करना भी दुःशक्य था। इसलिए स्वर्ण-मुद्राओं के भरे हुए वैसे पात्र को एक इकाई मान कर यहाँ सम्पत्ति का परिमाण बतलाया गया है।
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थों में इन प्राचीन माप-तौलों के सम्बन्ध में चर्चाएं प्राप्त होती हैं। प्राचीन काल में मागध-मान और कलिंग-मान-यह दो तरह के तौल-माप प्रचलित थे। मागधमान का अधिक प्रचलन और मान्यता थी। भावप्रकाश में इस सन्दर्भ में विस्तार से चर्चा है। वहां महर्षि चरक को आधार मानकर मागधमान का विवेचन करते हुए परमाणु से प्रारम्भ कर उत्तरोत्तर बढ़ते हुए मानों-परिमाणों की चर्चा की है। वहां बतलाया गया है
"तीस परमाणुओं का एक त्रसरेणु होता है । उसे वंशी भी कहा जाता है । जाली में पड़ती हुई सूर्यकी किरणों में जो छोटे-छोटे सूक्ष्म रजकण दिखाई देते हैं, उनमें से प्रत्येक की संज्ञा त्रसरेणु या वंशी है । छह त्रसरेणु की एक मरीचि होती है । छह मरीचि की एक राजिका या राई होती है । तीन राई का एक सरसों, आठ सरसों का एक जौ, चार जौ की एक रत्ती, छह रत्ती का एक मासा होता है । मासे के पर्यायवाची हेम और धानक भी हैं। चार मासे का एक शाण होता है, धरण और टंक इसके पर्यायवाची हैं । दो शाण का एक कोल होता है । उसे क्षुद्रक, वटक एवं द्रङ् क्षण भी कहा जाता है । दौ कोल का एक कर्ष होता है । पाणिमानिका, अक्ष, पिचु, पाणितल, किंचित्पाणि, तिन्दुक, विडालपदक, षोडशिका, करमध्य, हंसपद, सुवर्ण, कवलग्रह तथा उदुम्बर इसके पर्यायवाची हैं। दो कर्ष का एक अर्धपल (आधा पल) होता है। उसे शुक्ति या अष्टमिक भी कहा जाता है। दो शुक्ति का एक पल होता है । मुष्टि, आम्र, चतुर्थिका, प्रकुंच, षोडशी तथा बिल्व भी इसके नाम हैं। दो पल की एक प्रसृति होती है, उसे प्रसृत भी कहा जाता है । दो प्रसृति की एक अंजलि होती है । कुडव, अर्ध शरावक तथा अष्टमान भी उसे कहा जाता है । दो कुडव की एक मानिका होती है । उसे शराव तथा अष्टपल भी कहा जाता है। दो शराव का एक प्रस्थ होता है अर्थात् प्रस्थ में ६४ तोले होते हैं । पहले ६४ तोले का ही सेर माना जाता था, इसलिए प्रस्थ को सेर का पर्यायवाची माना जाता है । चार प्रस्थ का एक आढक होता है, उसको