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[उपासकदशांगसूत्र परितुष्ट हुई। उसने भगवान् को वंदन-नमस्कार किया। वंदन-नमस्कार कर वह बोली-भगवन् ! मुझे निर्ग्रन्थ-प्रवचन में श्रद्धा है, (विश्वास है, निर्ग्रन्थ-प्रवचन मुझे रूचिकर है, भगवन् ! यह ऐसा ही है, यह तथ्य है, सत्य है, इच्छित है, प्रतीच्छित है , इच्छित-प्रतीच्छित है,) जैसा आपने प्रतिपादित किया, वैसा ही है। देवानुप्रिय! जिस प्रकार आपके पास बहुत से उग्र-आरक्षक-अधिकारी, भोग-राजा के मन्त्रीमण्डल के सदस्य (राजन्य-राजा के परामर्शक मण्डल के सदस्य, क्षत्रिय-क्षत्रिय वंश के राजकर्मचारी, ब्राह्मण, सुभट, योद्धा-युद्धोपजीवी-सैनिक, प्रशास्ता-प्रशासन-अधिकारी, मल्लकि-मल्ल-गणराज्य के सदस्य, लिच्छिवि-लिच्छिवि गणराज्य के सदस्य तथा अन्य अनेक राजा, ऐश्वर्यशाली, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, धनी, श्रेष्ठी सेनापति एवं सार्थवाह) आदि मुडित होकर, गृहवास का परित्याग कर अनगार या श्रमण के रूप में प्रव्रजित हुए, मैं उस प्रकार मुंडित होकर (गृहवास का परित्याग कर अनगार-धर्म में) प्रव्रजित होने में असमर्थ हूं। इसलिए आपके पास पांच अणुव्रत, सात शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार का श्रावक-धर्म ग्रहण करना चाहती हूं।
अग्निमित्रा के यों कहने पर भगवान् ने कहा-देवानुप्रिये ! जिससे तुमको सुख हो, वैसा करों, विलम्ब मत करो। विवेचन
इस सूत्र में आए मल्लकि और लिच्छिवि नाम भारतीय इतिहास के एक बड़े महत्त्वपूर्ण समय की ओर संकेत करते हैं। वैसे आज बोलचाल में यूरोप को, विशेषत: इंग्लैण्ड को प्रजातन्त्र का जन्मस्थान (mother of democracy) कह दिया जाता है, पर भारतवर्ष में प्रजातन्त्रात्मक शासनप्रणाली का सफल प्रयोग सहस्त्राब्दियों पूर्व हो चुका था। भगवन् महावीर एवं बुद्ध के समय आज के पूर्वी उत्तरप्रदेश तथा तथा बिहार में अनेक ऐसे राज्य थे, जहाँ उस समय की अपनी एक विशेष गणतन्त्रात्मक प्रणाली से जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि शासन करते थे। शब्द उनके लिए भी राजा था, पर वह वंश-क्रमागत राज्य के स्वामी का द्योतक नहीं था। भगवान् महावीर के पिता सिद्धार्थ तथा बुद्ध के पिता शुद्धोधन दोनों के लिए राजा शब्द आया है, पर वे संघ-राज्यों के निर्वाचित राजा या शासनपरिषद् के सदस्य थे, जिन पर एक क्षेत्र-विशेष के शासन का उत्तरदायित्व था।
प्राचीन पाली तथा प्राकृत ग्रन्थों में इन संघ-राज्यों का अनेक स्थानों पर वर्णन आया है। कुछ संघ मिल कर अपना एक वृहत् संघ भी बना लेते थे। ऐसे संघों में वज्जिसंघ प्रसिद्ध था, जिसमें मुख्यतः लिच्छिवि, नाय (ज्ञातृक) तथा वजि आदि सम्मिलित थे। उस समय के संघ-राज्यों में कपिलवस्तु के शाक्य, पावा तथा कुशीनारा के मल्ल, पिप्पलिवन के मौर्य, मिथिला के विदेह, वैशाली के लिच्छिवि तथा नाय बहुत प्रसिद्ध थे। यहां प्रयुक्त मल्लकि शब्द मल्ल संघ-राज्य से सम्बद्ध जनों के लिए तथा लिच्छिवि शब्द लिच्छिवि संघ-राज्य से सम्बद्ध जनों के लिए है। भगवान् महावीर के पिता सिद्धार्थ लिच्छिवि और नाय संघ से सम्बद्ध थे। लिच्छिवि संघ-राज्य के प्रधान चेटक थे, जिनकी बहिन त्रिशला का विवाह सिद्धार्थ से हुआ था। अर्थात् चेटक भगवान् महावीर के मामा थे। कल्पसूत्र में एक ऐसे संघीय-समुदाय का उल्लेख है, जिसमें नौ मल्लकि, नौ लिच्छिवि तथा काशी, कोसल के १८ गणराज्य