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छठा अध्ययन : कुंडकौलिक ]
विवेचन
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काम्पिल्यपुर भारतवर्ष का एक प्राचीन नगर था । महाभारत आदिपर्व (१३७.७३), उद्योग - पर्व (१८९.१३, १९२.१४), शान्तिपर्व ( १३९.५) में काम्पिल्य का उल्लेख आया है। आदिपर्व और उद्योगपर्व अनुसार यह उस समय के दक्षिण पांचाल प्रदेश का एक नगर था । यह राजा द्रुपद की राजधानी था। द्रौपदी का स्वयंवर यहीं हुआ था ।
नायाधम्मकहाओ (१६ वें अध्ययन) में भी पांचाल देश के राजा द्रुपद के यहां काम्पिल्यपुर में द्रौपदी के जन्म आदि का वर्णन है ।
इस समय यह बदायूं और फर्रुखाबाद के बीच बूढ़ी गंगा के किनारे कम्पिल नामक ग्राम के रूप में अवस्थित है । कभी यह जैन धर्म का प्रमुख केन्द्र रहा था । आगमों में प्राप्त संकेतों से प्रकट होता है, भगवान् महावीर के समय में यह बहुत ही समृद्ध नगर था ।
अशोकवाटिका में ध्यान - निरत
१६६. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए अन्नया कयाइ पुव्वावरण्ह - कालसमयंसि जेणेव असोगवणिया, जेणेव पुढवि-सिला-पट्टए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढवि-सिला - पट्टए ठवेइ, ठवेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपणत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ।
एक दिन श्रमणोपासक कुंडकौलिक दोपहर के समय अशोकवाटिका में गया । उसमें जहाँ पृथ्वी - शिलापट्टक था, वहां पहुंचा। अपने नाम से अंकित अंगूठी और दुपट्टा उतारा। उन्हें पृथ्वीशिलापट्टक पर रखा । रखकर, श्रमण भगवान् महावीर के पास अंगीकृत धर्म - प्रज्ञप्ति - धर्म - शिक्षा के अनुरूप उपासना-रत हुआ ।
देव द्वारा नियतिवाद का प्रतिपादन
१६७. तए णं तस्स कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था । श्रमणोपासक कुंडकौलिक के समक्ष एक देव प्रकट हुआ।
१६८. तए णं से देवे नाम मुद्दं च उत्तरिज्जं च पुढवि - सिला - पट्टयाओ गेves, गेण्हित्ता सखिंखिणिं अंतलिक्ख पडिवन्ने कुंडकोलियं समणोवासयं एवं वयासी - हं भो ! कुंडकोलिया ! समणोवासया ! सुन्दरी णं देवाणुप्पिया ! गोसालस्स मंखली - पुत्तस्स धम्मपण्णत्ती - नत्थि उट्ठाणे इ वा, कम्मे इ वा, बले इ वा, वीरिए इ वा, पुरिसक्कार- परक्कमे इवा, नियया सव्व-भावा, मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्म- पण्णत्ती - अत्थि उट्ठाणे इ वा, जाव (कम्मे इ वा, बले इ वा, पुरिसक्कार - ) परक्कमे इ वा, अणियया सव्व-भावा । उस देव ने कुंडकौलिक की नामांकित मुद्रिका और दुपट्टा पृथ्वीशिलापट्टक से उठा लिया।