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[उपासकदशांगसूत्र
आए हैं, जिनसे प्रकट होता है कि वह जिस मत में विश्वास करता था, उसने उसके सिद्धान्तों का सूक्ष्मता से अध्ययन किया था। जिज्ञासाओं और प्रश्नों द्वारा उसने तत्त्व की गहराई तक पहुंचने का प्रयास किया था। उनके अपने विचारों के अनुसार आजीविकमत सत्य और यथार्थ था। इसीलिए वह उसके प्रति अत्यन्त आस्थावान् था, जो अस्थि-मज्जा-प्रेमानुरागरक्त विशेषण से प्रकट है। इससे यह भी अनुमित होता है कि उस समय के नागरिक अपने व्यावसायिक, लौकिक जीवन के संचालन के साथ-साथ तात्त्विक एवं धार्मिक दृष्टि से भी गहराई में जाते थे। सम्पत्ति : व्यवसाय
१८२. तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एक्का हिरण्ण-कोडी निहाणपउत्ता, एक्का वुड्ढि-पउत्ता, एक्का पवित्थर-पउत्ता, एक्के वए, दस-गोसाहस्सिएणं वएणं।
___ आजीविक मतानुयायी सकडालपुत्र की एक करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थीं। एक करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं व्यापार में लगी थीं तथा एक करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं घर के वैभव-साधन सामग्री में लगी थीं उसके एक गोकुल था, जिसमें दस हजार गायें थी। १८३. तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स अग्गिमित्ता नामं भारिया होत्था।
आजीविकोपासक सकडालपुत्र की पत्नी का नाम अग्निमित्रा था।
१८४. तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स पोलासपुरस्स नगरस्स बहिया पंच कुंभकारावण-सया होत्था। तत्थ णं बहवे पुरिसा दिण्ण-भइ-भत्त-वेयणा कल्लाकल्लि बहवे करए य वारए य पिहडए य घडए य अद्ध-घडए य कलसए य अलिंजरए य जंबूलए य उट्टियाओ य करेंति। अन्ने य से बहवे पुरिसा दिण्ण-भइ-भत्त-वेयणा कल्लाकल्लि तेहिं बहूहिं करएहि य जाव (वारएहि य पिहडएहि य घडएहि य अद्ध-घडएहि य कलसहि य अलिंजरएहि य जंबूलएहि य) उट्टियाहि य राय-मग्गंसि वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति।
पोलासपुर नगर के बाहर आजीविकोपासक सकडालपुत्र के कुम्हारगिरी के पांच सौ आपणव्यवसाय-स्थान-बर्तन बनाने की कर्मशालाएँ थीं। वहाँ भोजन तथा मजदूरी रूप वेतन पर काम करने वाले बहुत से पुरूष प्रतिदिन प्रभात होते ही, करक-करेवे, वारक-गडुए, पिठर-आटा गूंधने या दही जमाने के काम में आने वाली परातें या कुंडे, घटक-तालाब आदि से पानी लाने के काम में आने वाले घड़े अर्द्धघटकअधघड़े-छोटे घड़े, कलशक-कलसे, बड़े घड़े, अलिंजर-पानी रखने के बड़े मटके, जंबूलक-सुराहियाँ, उष्ट्रिका-तैल, घी आदि रखने में प्रयुक्त लम्बी गर्दन और बड़े पेट वाले बर्तन--कूपे बनाने के लग जाते थे। भोजन व मजदूरी पर काम करने वाले दूसरे बहुत से पुरूष सुबह होते ही बहुत से करवे (गडुए, परातें या कुंडे, घड़े, अधघड़े मटके, सुराहियाँ ) तथा कुपों के साथ सड़क पर अवस्थित हो, उनकी बिक्री में लग जाते थे। विवेचन
प्रस्तुत सूत्र के सकडालपुत्र की कर्मशालाएँ नगर से बाहर होने का जो उल्लेख है, उससे यह