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छठा अध्ययन
कुंडकौलिक श्रमणोपासक कुंडकौलिक
१६५. छट्ठस्स उक्खेवओ। एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं कम्पिल्लपुरे नयरे सहस्संबवणे उजाणे। जियसत्तू राया। कुंडकोलिए गाहावई। पूसा भारिया।छ हिरण्णकोडीओ निहाण-पउत्ताओ, छ वुड्डि-पउत्ताओ, छ पवित्थर-पउत्ताओ, छ वया, दस-गोसाहस्सिएणं वएणं।
सामी समोसढे। जहा कामदेवो तहा सावयधम्म पडिवज्जइ। सा चेव वत्तव्वया जाव पडिलाभेमाणे विहरइ। ___ उपक्षेप'-उपोद्घातपूर्वक छठे अध्ययन का प्रारम्भ यों है--
आर्य सुधर्मा ने कहा--जम्बू! उस काल-वर्तमान अवसर्पिणी के चौथे आरे के अन्त में, उस समय-जब भगवान् महावीर सदेह विघमान थे, काम्पिल्यपुर नामक नगर था। वहाँ सहस्राम्रवन नामक उद्यान था। जितशत्रु वहां का राजा था। उस नगर में कुंडकौलिक नामक गाथापति निवास करता था। उसकी पत्नी का नाम पूषा था। छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राएँ सुरक्षित धन के रूप में उसके खजाने में थीं, छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं व्यापार-व्यवसाय में लगी थीं, छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं घर के वैभव-धन, धान्य, द्विपद, चतुष्पद आदि साधन-सामग्री में लगी थीं। उसके छह गोकुल थे। प्रत्येक गोकुल में दसदस हजार गायें थीं।
भगवान् महावीर पधारे-समवसरण हुआ। कामदेव की तरह कुंडकौलिक ने भी श्रावक धर्म स्वीकार किया।
श्रमण निर्ग्रन्थों को शुद्ध आहार-पानी आदि देते हुए धर्माराधना में निरत रहने तक का घटनाक्रम पूर्ववर्ती वर्णन जैसा ही है। यों कुण्डकौलिक धर्म की उपासना में निरत था।
१. जइ णं भंते! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं उवासगदसाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमट्टे पण्णत्ते, छट्ठस्स णं भत्ते!
अज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते? २. देखें सूत्र-संख्या ६४
आर्य सुधर्मा ने जम्बू से पूछा-सिद्धिप्राप्त भगवान् महावीर ने उपासकदशा के पांचवें अध्ययन का यदि यह अर्थभाव प्रतिपादित किया तो भगवन् ! उन्होंने छठे अध्ययन का क्या अर्थ-भाव बतलाया? (कृपया कहें।)