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पांचवा अध्ययन
चुल्लरातक श्रमणोपासक चुल्लशतक
१५७. उक्खेवो पंचमस्त अज्झयणस्स। एवं खलु, जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया नामं नयरी। संखवणे उजाणे। जियसत्तू राया। चुल्लसए, गाहावई अड्ढे जाव', छ हिरण्ण-कोडीओ जाव (निहाल-पउत्ताओ, छ वड्ढि-पउत्ताओ, छ पवित्थर-पउत्ताओ) छ वया, दस-गो-साहस्सिएणं वएणं। बहुला भारिया।
सामी समोसढे। जहा आणंदो तहा गिहि-धम्म पडिवजइ। सेसं जहा कामदेवो जाव' धम्मपण्णतिं उवसंपज्जिताणं विहरइ। . उत्क्षेप-उपोद्घातपूर्वक पांचवें अध्ययन का आरम्भ यों है--
आर्य सुधर्मा ने कहा--जम्बू! उस काल--वर्तमान अवसर्पिणी के चौथे आरे के अन्त में, उस समय-जब भगवान् महावीर सदेह विद्यमान थे, आलमिका नामक नगरी थी। वहाँ शंखवम उद्यान था। वहाँ के राजा का नाम जितशत्रु था। उस नगरी में चुल्लशतक नामक गाथापति निवास करता था। वह बड़ा समृद्ध एवं प्रभावशाली था। (छह करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ उसके खजाने में रखी थीं, छह करोड़ स्वर्णमुद्राएँ व्यापार में लगी थीं तथा छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं घर के वैभव एवं साज-सामान में लगी थीं।) उसके छह गोकुल थे। प्रत्येक गोकुल में दस-दस हजार गायें थी। उसकी पत्नी का नाम बहुला था।
भगवान् महावीर पधारे - समवसरण हुआ। आनन्द की तरह चुल्लशतक ने भी श्रावक-धर्म स्वीकार किया। आगे का घटना-क्रम कामदेव की तरह है। वह उसी की तरह भगवान् महावीर के पास अंगीकृत धर्म-प्रज्ञप्ति--धर्म-शिक्षा के अनुरूप उपासना-रत हुआ। देव द्वारा विघ्न
१५८. तए णं तस्स चुल्लसयगस्स श्रमणोवासयस्स पुव्व-रत्तावरत्तकाल-समयंसि
१. जइणं भंते! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं उवासगदसाणं चउत्थस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते, पंचमस्सणं
भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते? २. देखें सूत्र-संख्या ३ ३. आर्य सुधर्मा से जम्बू ने पूछा-सिद्धिप्राप्त भगवान् महावीर ने उपासकदशा के चतुर्थ अध्ययन का यह अर्थ-भाव
प्रतिपादित किया तो भगवन्! उन्होंने पंचम अध्ययन का क्या अर्थ बतलाया? (कृपया कहें।)