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पांचवा अध्ययन सार-संक्षेप
उत्तर भारत में आलभिका नामक नगरी थी। शंखवन नामक वहाँ उद्यान था। जितशत्रु वहाँ का राजा था। उस नगरी में चुल्लशतक नामक एक समृद्धिशाली गाथापति निवास करता था। उसकी छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं खजाने में सुरक्षित थीं, उतनी ही व्यापार में लगी थीं और उतनी ही घर के वैभव तथा उपकरणों में उपयोग में आ रही थीं। दस-दस हजार गायों के छह गोकुल उसके यहां थे।
श्रमण भगवान् महावीर अपने जनपद-विहार के बीच एक बार आलभिका पधारे। अन्य लोगों की तरह चुल्लशतक भी उनके दर्शन हेतु पहुंचा। उनकी धर्म-देशना से प्रभावित हुआ और उसने गृहस्थ-धर्म या श्रावक-व्रत स्वीकार किए।
गृहस्थ में रहते हुए भी चुल्लशतक व्रतों की आराधना, धर्म की उपासना में पूरी रूचि लेता था। लोक और अध्यात्म का सन्दर समन्वय उसके जीवन में था। व्रत.साधना. अभ्यास आदि
मय करता रहता था। एक दिन वह पोषधशाला में ब्रह्मचर्य एवं पोषध-व्रत स्वीकार किए धर्मोपासना में तन्मय था। आधी रात का समय था, अचानक एक देव उसके सामने प्रकट हुआ। वह चुल्लशतक को साधना से विचलित करना चाहता था। चुलनीपिता के साथ जैसा घटित हुआ था, यहाँ भी इस देव के हाथों चुल्लशतक के साथ घटित हुआ। देव ने उसके तीनों पुत्रों को उसके देखते-देखते मार डाला, उनके सात-सात टुकड़े कर डाले। उसका रक्त और मांस उस पर छिड़का। पर, ममता और क्रोध दोनों से ही चुल्लशतक काफी ऊंचा उठा हुआ था। इसलिए वह अपने व्रत से नही डिगा। धर्मध्यान में तन्मय रहा।
देव ने तब यह सोचकर कि संसार में हर किसी की धन के प्रति अत्यन्त आसक्ति और ममता होती है। मनुष्य और सब सह जाता है, पर धन की चोट उसके लिए भारी पड़ती है इसलिए मुझे अब इसके साथ ऐसा ही करना चाहिए। देव क्रुध और कर्कश स्वर में चुल्लशतक से बोला-मान जाओ, अपने व्रतों को तोड़ दो, देख लो-यदि नहीं तोड़ोगे तो मैं खजाने में रखी तुम्हारी छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं को घर से निकाल लाऊंगा और उन्हें आलभिका नगरी की सड़कों और चौराहों पर चारों तरफ बिखेर दूंगा। तुम अंकिचन और दरिद्र बन जाओगे। इतने व्याकुल और दुःखी हो जाओगे कि जीवित नहीं रह सकोगे! चुल्लशतक ऐसा कहने पर भी धर्म साधना में स्थिर रहा।
देव ने कड़कती आवाज में दूसरी बार ऐसा कहा, तीसरी बार ऐसा कहा। चुल्लशतक, जो अब तक उपासना में स्थिर था, सहसा चौंक पड़ा। उसके सारी शरीर में बिजली-सी कौंध गई और आशंकित दरिद्रता का भयानक दृश्य उसकी आंखों के सामने नाचने लगा। वह घबरा गया। उसके मन में बार-बार आने लगा--इस जगत् में ऐसा कुछ नहीं है, जो धन से न सध सके। जिसके पास धन होता