Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
१३४]
[उपासकदशांगसूत्र है, उसी के मित्र होते हैं, उसी के बन्धु-बान्धव होते हैं, वही मनुष्य माना जाता है, उसी को सब बुद्धिमान् कहते है।
धन की गर्मी एक विचित्र गर्मी हैं, जो मानव को ओजस्वी; तेजस्वी, साहसी-सब कुछ बनाए रखती है, उसके निकल जाते ही; वही इन्द्रियां, वही नाम, वही बुद्धि, वही वाणी--इन सबके रहते मनुष्य और ही कुछ हो जाता है।
घबराहट में चुल्लशतक को यह भान नहीं रहा कि वह व्रत में है। इसलिए अपना धन नष्ट कर देने पर उतारू उस पुरूष पर इसको बड़ा क्रोध आया और वह हाथ फैलाकर उसे पकड़ने के लिए झपटा। पोषधशाला में खड़े खंभे के सिवाय उसके हाथ कुछ नहीं आया। देव अन्तर्धान हो गया। चुल्लशतक किंकर्तव्यविमूढ-सा बन गया। वह समझ नहीं सका, यह क्या घटित हुआ। व्याकुलता के कारण वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा। चिल्लाहट सुनकर उसकी पत्नी बहुला वहाँ आई और जब उसने अपने पति से सारी बात सुनी तो बोली-यह आपकी परीक्षा थी । देवकृत उपसर्ग था। आप खूब दृढ रहे। पर, अन्त में फिसल गए। आपका व्रत भग्न हो गया। आलोचना, प्रतिक्रमण कर, प्रायश्चित्त स्वीकार कर आत्मशोधन करें । चुल्लशतक ने वैसा ही किया और भविष्य में धर्मों-पासना में सदा सुदृढ़ बने रहने की प्रेरणा प्राप्त की।
चुल्लशतक का उत्तरवर्ती जीवन चुलनीपिता की तरह व्रताराधना में उत्तरोत्तर उन्नतिशील रहा। उसने अणुव्रत, गुणव्रत, शिक्षाव्रत आदि की सम्यक् उपासना करते हुए बीस वर्ष तक श्रावकधर्म का पालन किया। ग्यारह श्रावक-प्रतिमाओं की भली-भांति आराधना की। एक मास की अन्तिम संलेखना अनशन और समाधिपूर्वक देह-त्याग किया। सौधर्म देवलोक में अरूणसिद्ध विमान में वह देव-रूप में उत्पन्न हुआ।
१. न हि तद्विद्यते किञ्चिद्यदर्थेन न सिद्ध्यति।
यत्नेन मतिमांस्तस्मादर्थमेकं प्रसाधयेत् ॥ यल्याऽर्थास्तस्य मित्राणि, यस्याऽर्थास्तस्य बान्धवाः। यस्याऽर्थाः स पुमाल्लोके, यस्याऽर्थाः स च पण्डितः ॥
पंचतन्त्र १.२, ३ २. तानीन्द्रियाण्यविकलानि तदेव नाम,
सा बुद्धिरप्रतिहता वचनं तदेव। अर्थोष्मणा विरहितः पुरूषः स एव, अन्यः क्षणेन भवतीति विचित्रमेतत् ॥
हितोपदेश १.१२७