Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ अध्ययन : सुरादेव]
[१२९ एवं वयासी--हं भों! सुरादेवा समणोवासया! अपत्थिय-पत्थिया ४। जइ णं तुमं सीलाई जाव' न भंजेसि, तो ते जेटुं पुतं साओ गिहाओ नीणेमि, नीणेता तब अग्गओ घाएमि, घाएत्ता पंच सोल्लए करेमि, करेत्ता आदाण-भरियंसि कडाहयंसि अहहेमि, अहहेत्ता तव गायं मंसेण य साणिएण य आयंचामि, जहा णं तुमं अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि।
एवं मज्झिमयं, कणीयसं; एक्केक्के पंच सोल्लया। तहेव करेइ जहा चुलणीपियस्स, नवरं एक्कक्के पंच सोल्लया।
एक दिन की बात है, आधी रात के समय श्रमणोपासक सुरादेव के समक्ष एक देव प्रकट हुआ। उसने नीली, तेज धार वाली तलवार निकालकर श्रमणोपासक सुरादेव से कहा--मृत्यु को चाहने वाले श्रमणोपासक सुरादेव! यदि तुम आज शील, व्रत आदि को भंग नहीं करते हो तो मैं तुम्हारे बड़े बेटे को घर से उठा लाऊंगा। लाकर तुम्हारे सामने उसे मार डालूंगा। मारकर उसके पांच मांस-खण्ड करूंगा, उबलते पानी से भरी कढ़ाही में खौलाऊंगा, उसके मांस और रक्त से तुम्हारे शरीर को सीचूंगा, जिससे तुम असमय में ही जीवन से हाथ धो बैठोगे।
इसी प्रकार उसने मंझले और छोटे लड़के को भी मार डालने, उनको पांच-पांच मांस-खंडों में काट डालने की धमकी दी। सुरादेव के अविचल रहने पर जैसा चुलनीपिता के साथ देव ने किया था, वैसा ही उसने किया, उसके पुत्रों को मार डाला। इतना भेद रहा, वहाँ देव ने तीन-तीन मांस खंड किये थे, यहाँ देव ने पांच-पांच मांस खंड किए। भीषण व्याधियों की धमकी
१५२. तए णं देवे सुरादेवं समणोवासयं तउत्थं पि एवं वयासी-हं भो! सुरादेवा समणोवासया! अपत्थिय-पत्थिया ४ ! जाव' न परिच्चयसि, तो ते अज सरीरंसि जमगसमगमेव सोलस-रोगायं के पक्खिवामि, तं जहा-सासे, कासे जाव (जरे, दाहे, कुच्छिसूले, भगंदरे , अरिसए, अजीरए, दिट्ठिसूरे, मुद्धसूले, अकारिए, अच्छिवेयणा, कण्णवेयणा कंडुए, उदरे ) कोढे, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट जाव (वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ) ववरोविज्जसि।
तब उस देव ने श्रमणोपासक सुरादेव को चौथी बार भी ऐसा कहा-मुत्यु को चाहने वाले श्रमणोपासक सुरादेव! यदि अपने व्रतों का त्याग नही करोगे तो आज मैं तुम्हारे शरीर में एक ही साथ श्वास-दमा, कास-खांसी, (ज्वर-बुखार, दाह-देह में जलन, कुक्षि-शूल-पेट में तीव्र पीड़ा, भगंदरगुदा पर फोड़ा, अर्श-बवासीर, अजीर्ण-बदहजमी, दृष्टिशूल-नेत्र में शूल चुभने जैसी तेज पीड़ा, मूर्द्धशूल--मस्तक-पीड़ा, अकारक-भोजन में अरूचि या भूख न लगना, अक्षि-वेदना-आंख दुखना, कर्ण
१. देखें सूत्र-संख्या १०७। २. देखें सूत्र-संख्या १०७।।