Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 171
________________ १३०] [ उपासकदशांगसूत्र वेदना-कान दुखना, कण्डू-खुजली, उदर-रोग- जलोदर आदि पेट की बीमारी तथा) कुष्ठ-कोढ़, ये सोलह भयानक रोग उत्पन्न कर दूगां, जिससे तुम आर्तध्यान तथा विकट दुःख से पीड़ित होकर असमय में ही जीवन से हाथ धो बैठोगे। १५३. तए णं से सुरादेवे समणोवासए जाव (तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए, अतत्थे, अणुव्विग्गे, अक्खुभिए, अचलिए, असंभंते, तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए) विहरइ, एवं देवो दोच्चंपि तच्चं पि भणइ जाव (जइ णं तुमं अज सीलाइं, वयाई, वेरमणाई, पच्च्क्खाणाइ, पोसहोववासाइं न छड्डेसि, न भंजेसि, तो ते अहं अज सरीरंसि जमगसमगमेव सोलह रोगायंके पक्खिवामि जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ) ववरोविज्जसि। ___ श्रमणोपासक सुरादेव (उस देव द्वारा यों कहे जाने पर भी जब भयभीत, त्रस्त, उद्विग्न, क्षुभित, चलित तथा आकुल नहीं हुआ, चुपचाप--शान्त-भाव से) धर्म-ध्यान में लगा रहा तो उस देव ने दूसरी बार, तीसरी बार फिर वैसा ही कहा--(यदि तुम आज शील, व्रत, विरमण, प्रत्याख्यान तथा पोषधोपवास का त्याग नहीं करते हो-भंग नही करते हो तो मैं तुम्हारे शरीर में एक साथ सोलह भयानक रोग पैदा कर दूंगा, जिससे तुम आर्तध्यान और विकट दु:ख से पीड़ित होकर असमय में ही जीवन से हाथ धो बैठोगे) सुरादेव का क्षोभ १५४. तए णं तस्स सुरादेवस्य समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए ४-अहो णं इमे पुरिसे अणारिए जाव' समायरइ, जेणं ममं जेठं पुत्तं जाव (साओ गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ, घाएत्ता पंच मंस-सोल्लए करेइ, करेत्ता आदाण-भरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आयंचइ, जे णं ममं मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ घाएत्ता पंच-मस-सोल्लए करेइ, करेत्ता आदाण-भरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता मम गायं मंसेण य सोणिएण य) आयंचइ, जे वि य इमे सोलस रोगायंका, ते वि य इच्छइ मम सरीरगंसि पक्खिवित्तए, तं सेयं खलु ममं एयं पुरिसं गिण्हित्तए त्ति कटु उद्घाइए। से वि य आगासे उप्पइए। तेण य खंभे आसाइए, महया महया सद्देणं कोलाहले कए। उस देव द्वारा दूसरी, तीसरी बार यों कहे जाने पर श्रमणोपासक सुरादेव के मन में ऐसा विचार आया, यह अधम पुरूष (जो मेरे बड़े लड़के को घर से उठा लाया, मेरे आगे उसकी हत्या की, उसके पांच मांस-खंड किए, उबलते पानी से भरी कढ़ाही में खौलाया, उसके मांस और रक्त से मेरे शरीर को १. देखें सूत्र-संख्या १४५।

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