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[उपासकदशांगसूत्र दोच्चंपि तच्चपि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी - हं भो चुलणीपिया समणोवासया! अपत्थिय-पत्थिया! जाव' न भंजेसी, तो ते अहं अज मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि जहा जेटुं पुत्तं तहेव भणइ, तहेव करेइ। एवं तच्चपि कणीयसं जाव अहियासेइ।
देव ने श्रमणोपासक चुलनीपिता को जब यों निर्भीक देखा तो उसने दूसरी-तीसरी बार कहामौत को चाहनेवाले चुलनीपिता! यदि तुम अपने व्रत नहीं तोड़ोगे, तो मैं तुम्हारे मंझले पुत्र को घर से उठा लाऊंगा और तुम्हारे सामने तुम्हारे बड़े बेटे की तरह उसकी भी हत्या कर डालूंगा। इस पर भी चुलनीपिता जब अविचल रहा तो देव ने वैसा ही किया। उसने तीसरी बार फिर छोटे लड़के के सम्बन्ध में वैसा ही करने को कहा। चुलनीपिता नहीं घबराया। देव ने छोटे लड़के के साथ भी वैसा ही किया। चुलनीपिता ने वह तीव्र वेदना तितिक्षापूर्वक सहन की। मातृ वध की धमकी
१३३. तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जावपासइ, पासित्ता चउत्थं पि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी-हं भो! चुलणीपिया! समणोवासया! अपत्थियपत्थिया! जइ णं तुमं जावन भंजेसि, तओ अहं अज्ज जा इमा तव माया भद्दा सत्थवाही देवयगुरूजणणी, दुक्करदुक्करकारिया, तं ते साओ गिहाओ नीणेमि, नीणेत्ता तब अग्गओ घाएमि, घाएत्ता तओ मंससोल्लए करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अहहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आयंचामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि।
देव ने जब श्रमणोपासक चुलनीपिता का इस प्रकार निर्भय देखा तो उसने चौथी बार उससे कहा-मौत को चाहने वाले चुलनीपिता! यदि तुम अपने व्रत नहीं तोड़ोगें तो मैं तुम्हारे लिए देव और गुरू सदृश पूजनीय, तुम्हारे हितार्थ अत्यन्त दुष्कर कार्य करने वाली अथवा अति कठिन धर्म-क्रियाएं करने वाली तुम्हारी माता भद्रा सार्थवाही को घर से यहाँ ले आऊंगा। लाकर तुम्हारे सामने उसकी हत्या करूंगा, उसके तीन मांस-खंड करूंगा, उबलते पानी से भरी कढ़ाही में खौलाऊंगा। उसके मांस और रक्त से तुम्हारे शरीर को सींचूंगा-छींटूंगा, जिससे तुम आर्तध्यान एवं विकट दुःख से पीड़ित होकर असमय में ही प्राणों से हाथ धो बैठोगे। विवेचन
प्रस्तुत सूत्र में श्रमणोपासक चुलनीपिता की माता भद्रा सार्थवाही का एक विशेषण देव-गुरू१. देखें सूत्र-संख्या १०७। २. देखें सूत्र-संख्या ९७। ३. देखें सूत्र-संख्या १०७।