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[उपासकदशांगसूत्र मैने (सहनशीलता, क्षमा और तितिक्षापूर्वक वह तीव्र, विपुल-अत्यधिक, कर्कश--कठोर, प्रगाढ, रोद्र, कष्टप्रद तथा दुःसह) वेदना झेली।
छोटे पुत्र के मांस और रक्त से शरीर सींचने तक सारी घटना उसी रूप में घटित हुई। मैं वह तीव्र वेदना सहता गया।
१४२. तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता ममं चउत्थं पि एवं वयासी-हं भो! चुलणीपिया! समणोवासया! अपत्थिय-पत्थिया! जाव' न भंजेसि, तो ते अज्ज जा इमा माया गरू जाव (जणणी दुक्कर-दुक्करकारिया, तं साओ गिहाओ नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएता तओ मंससोल्लए करेमि करेत्ता आदाण भरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि-अहहेता, तब गायं मंसेण य सोणिएण य आयंचामि जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ) ववरोविजसि।
उस पुरूष ने जब मुझे निडर देखा तो चौथी बार उसने कहा-मौत को चाहने वाले श्रमणोपासक चुलनीपिता! तुम यदि अपने व्रत भंग नहीं करते हो तो आज (तुम्हारे लिए देव और गुरू सदृश पूजनीय, तुम्हारे हितार्थ अत्यन्त दुष्कर कार्य करने वाली--अति कठिन धर्म-क्रियाएं करने वाली तुम्हारी माता को घर से ले आऊंगा । लाकर तुम्हारे सामने उसका वध करूंगा, उसके तीन मांस-खण्ड करूंगा, उबलते पानी से भरी कढाही में खौलाऊंगा. उसके मांस और रक्त से तम्हारे शरीर को सीचंगा. जिससे तुम आर्तध्यान एवं विकट दुःखों से पीड़ित होकर असमय में ही) प्राणों से हाथ धो बैठोगे।
१४३. तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरामि। . उस पुरूष द्वारा यों कहे जाने पर भी मैं निर्भीकतापूर्वक धर्म-ध्यान में स्थित रहा।
१४४. तए णं से पुरिसे दोच्चंपि तच्चपि ममं एवं वयासी-हं भो! चुलणीपिया! समणोवासया! अज जाव' ववरोविज्जसि।
___ उस पुरूष ने दूसरी बार, तीसरी बार मुझे फिर कहा-- श्रमणोपासक चुलनीपिता! आज तुम प्राणों से हाथ धो बैठोगे।
१४५. तए णं तेणं पुरिसेणं दोच्चंपि तच्चपि ममं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए ५, अहो णं! इमे पुरिसे अणारिए जाव (अणारिय-बुद्धी, अणारियाई, पावाई कम्माइं समायरइ), जेणं ममं जेटुं पुत्तं साओ गिहाओ तहेव जाव कणीयसं जाव' आयंचइ,
१. देखें सूत्र-संख्या ९७। २. देखें सूत्र-संख्या १०७। ३. देखें सूत्र-संख्या ९८। ४. देखें सूत्र-संख्या १३५ । ५. देखें सूत्र-संख्या १३६ ।