Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय अध्ययन : चुलनीपिता ]
[ १२१
समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी-किणं पुत्ता! तुमं महया महया सद्देणं कोलाहले कए?
भद्रा सार्थवाही ने जब वह कोलाहल सुना, तो जहाँ श्रमणोपासक चुलनीपिता था, वहाँ वह आई, उससे बोली पुत्र ! तुम जोर-जोर से यों क्यों चिल्लाए ?
चुलनीपिता का उत्तर
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१३८. तए णं से चुलणीपिया समणोवासए अम्मयं भद्दं सत्थवाहिं एवं वयासी एवं खलु अम्मो ! न जाणामि के वि पुरिसे आसुरत्ते४, एगं महं नीलुप्पल जाव' असिं गहाय ममं एवं वयासी - हं भो ! चुलणीपिया! समणोवासया ! अपत्थिय पत्थिया! ४. जइ णं तुमं जाव (अज्ज सीलाइ, वयाइं, वेरमणाई, पच्चक्खाणाई, पोसहोववासाइं नस छड़डेसि, न भंजेसि, तो जाव तुमं अट्ट-दुहट्ट - वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ) ववरोविजसि ।
अपनी माता भद्रा सार्थवाही से श्रमणोपासक चुलनीपिता ने कहा-मां ! न जाने कौन पुरूष था, जिसने अत्यन्त क्रुद्ध होकर एक बड़ी नीली तलवार निकाल कर मुझे कहा-मृत्यु को चाहने वाले श्रमणोपासक चुलनीपिता! यदि तुम आज शील, (व्रत, विरमण, प्रत्याख्यान तथा पोषधोपवास) का त्याग नहीं करोगे, भंग नहीं करोगे तो तुम आर्तध्यान एवं विकट दुःख से पीड़ित होकर असमय में ही प्राणों से हाथ धो बैठोगे ।
१३९. तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरामि ।
उस पुरुष द्वारा यों कहे जाने पर भी मैं निर्भीकता के साथ अपनी उपासना में निरत रहा ।
१४०. तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव' विहरमाणं पासइ, पासित्ता ममं दोच्वंपि तच्चपि एवं वयासी - हं भो ! चुलणीपिया ! समणोवासया ! तहेव जाव' गायं अयंचइ |
जब उस उस पुरूष ने मुझे निर्भयतापूर्वक उपासनारत देखा तो उसने मुझे दूसरी बार, तीसरी बार फिर कहा - श्रमणोपासक चुलनीपिता! जैसा मैंने तुम्हें कहा है, मैं तुम्हारे शरीर को मांस और रक्त से सींचता हूँ और उसने वैसा ही किया ।
१४१. तए णं अहं उज्जलं, जाव (विउलं, कक्कसं, पगाढं, चंडं, दुक्खं, दुरहियासं वेयणं सम्मं सहामि, खमामि, तितिक्खामि, अहियासेमि । एवं तहेव उच्चारेयव्वं सव्वं जाव कणीयसं जाव' आयंचइ | अहं तं उज्जलं जाव' अहियासेमि ।
१. देखें सूत्र - संख्या ११६ ।
२. देखें सूत्र - संख्या ९८ ।
देखें सूत्र - संख्या ९७ ।
३.
४. देखें सूत्र - संख्या १३६ ।
५.
सूत्र - संख्या १३६ ।
देखें ६. देखें सूत्र यही ।