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[उपासकदशांगसूत्र उस देव ने श्रमणोपासक चुलनीपिता को निर्भय देखा तो दूसरी बार, तीसरी बार फिर वैसा ही कहा-श्रमणोपासक चुलनीपिता! तुम (आर्तध्यान एवं विकट दुःख से पीड़ित होकर असमय में ही) प्राणों से हाथ धो बैठोगे। चुलनीपिता का क्षोभः कोलाहल
१३६. तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोच्चंपि तच्चंपि एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे उज्झथिए ५, अहो णं इमे पुरिसे अणारिए, अणारियबुद्धी, अणारियाई, पावाइं कम्माइं समायरइ, जेणं ममं जेटुं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता ममं अग्गओ घाएइ, घाएत्ता जहा कयं तहा चिंतेइ जाव (तओ मंससोल्लए करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्देहत्ता) ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आयंचइ जेणं ममं मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ जाव (नीणेइ, नीणेत्ता ममं अग्गओ घाएइ, घाएत्ता तओ मंस-सोल्लए करेइ, करेत्ता आदाण-भरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता) ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आयंचइ, जेणं ममं कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ तहेव जाव' आयंचइ, जा वि य णं इमा ममं माया भद्दा सत्थवाही देवय-गुरू-जणणी, दुक्करदुक्कर-कारिया तं पि य णं इच्छइ साओ गिहाओ नीणेत्ता मम अग्गओ घाएत्तए, तं सेयं खलु ममं एयं पुरिसं गिण्हित्तए त्ति कटु उद्घाइए, से वि य आगासे उप्पइए, तेणं च खंभे आसाइए, महया महया सद्देणं कोलाहले कए।
उस देव ने जब दूसरी बार, तीसरी बार ऐसा कहा, तब श्रमणोपासक चुलनीपिता के मन में विचार आया--यह पुरूष बड़ा अधम है, नीच-बुद्धि है, नीचतापूर्ण पाप-कार्य करने वाला है, जिसने मेरे बड़े पुत्र को घर से लाकर मेरे आगे मार डाला (उसके तीन मांस-खण्ड किए, उबलते पानी से भरी कढ़ाही में खौलाया) उसके मांस और रक्त से मेरे शरीर को सींचा--छींटा, जो मेरे मंझले पुत्र को घर से ले आया, (लाकर मेरे सामने उसकी हत्या की, उसके तीन मांस-खण्ड किए, उबलते पानी से भरी कढ़ाही में खौलाया, उसके मांस और रक्त से मेरा शरीर सींचा छींटा,) जो मेरे छोटे पुत्र को घर से ले आया, उसी तरह उसके मांस और रक्त से मेरा शरीर सींचा, जो देव और गुरू सदृश पूजनीय, मेरे हितार्थ अत्यन्त दुष्कर कार्य करने वाली, अति कठिन क्रियाएं करने वाली मेरी माता भद्रा सार्थवाही को भी घर से लाकर मेरे सामने मारना चाहता है। इसलिए, अच्छा यही है, मैं इस पुरूष को पकड़ लूं। यों विचार कर वह पकड़ने के लिए दौड़ा। इतने में देव आकाश में उड़ गया। चुलनीपिता के पकड़ने को फैलाए हाथों में खम्भा आ गया। वह जोर-जोर से शोर करने लगा। माता का आगमन : जिज्ञासा
१३७ तएं णंसा भद्दा सत्थवाही तं कोलाहल-सदं सोच्चा, निसम्म जेणेवचुलणीपिया
१. देखें सूत्र-संख्या १३६ ।