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तृतीय अध्ययन : चुलनीपिता]
. [१२५ एयमट्ठ विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ जाव पडिवज्जइ।
श्रमणोपासक चुलनीपिता ने अपनी माता भद्रा सार्थवाही का कथन 'आप ठीक कहती हैं ' यों कहकर विनयपूर्वक सुना। सुनकर उस स्थान व्रत-भंग, नियमभंग और पोषधभंग रूप आचरण की आलोचना की, (यावत्) प्रायश्चित्त के रूप में तदनुरूप तपःक्रिया स्वीकार की। जीवन का उपासनामय अन्त
१४८. तए णं से चुलणीपिया समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ, पढमं उपासग-पडिमं अहासुत्तं जहा आणंदो जाव (दोच्चं उवासग-पडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छटुं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दशमं,) एक्कारसमं वि।
तत्पश्चात् श्रमणोपासक चुलनीपिता ने आनन्द की तरह क्रमशः पहली, (दूसरी, तीसरी, चौथी, पांचवीं, छठी, सातवीं, आठवीं, नौवी, दसवी तथा) ग्यारहवीं उपासक-प्रतिमा की यथाविधि आराधना की।
१४९. तए णं से चुलणीपिया समणोवासए तेणं उरालेणं जहा कामदेवो जाव (बहूहिं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेत्ता, बीसं वासाई समणोवासग-परियायं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासग-पडिमाओ सम्मं काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सर्व्हि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कंते, समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा)सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरथिमेणं अरूणप्पभे विमाणे देवत्ताए उववन्ने चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ।
निक्खेवो ॥सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं तइयं अज्झयणं समत्तं॥ श्रमणोपासक चुलनीपिता (अणुव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान तथा पोषधोपवास द्वारा अनेक प्रकार से आत्मा को भावित कर, बीस वर्ष तक श्रावकधर्म का पालन कर, ग्यारह उपासक-प्रतिमाओं की भली-भांति आराधना कर एक मास की संलेखना और एक मास का अनशन सम्पन्न कर, आलोचना, प्रतिक्रमण कर, मरण-काल आने पर समाधिपूर्वक देहत्याग कर--यों उग्र तपश्चरण के फल स्वरूप) सौधर्म, देवलोक में सौधर्मावतंसक महाविमान के ईशान कोण में स्थित अरूणप्रभ विमान में देव रूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ उसकी आयु-स्थिति चार पल्योपम की बताई गई है। महाविदेह क्षेत्र में वह सिद्ध होगा-मोक्ष प्राप्त करेगा।
॥निक्षेप॥ ॥ सातवें अंग उपासकदशा का तृतीय अध्ययन समाप्त ।
१. देखें सूत्र-संख्या ८७। २. एवं खलु जम्बू ! समणेण जाव संपतेणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्तेत्ति बेमि। ३. निगमन-आर्य सुधर्मा बोले--जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर ने उपासकदशा के तृतीय अध्ययन का यही अर्थ
भाव कहा था, जो मैंने तुम्हें बतलाया है।