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द्वितीय अध्ययन : गाथापति कामदेव ]
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सरिसा से केसा कविल-तेएणं दिप्पमाणा, महल्ल- उट्टिया - कभल्ल - संठाण-संठियं निडालं, मुगुंस- पुच्छं व तस्स भुमगाओ फुग्ग-फुग्गाओ विगय-वीभच्छ - दंसणाओं, सीस-घड़िविणिग्गयाइं अच्छीणि विगय-बीभच्छ- दंसणाई, कण्णा जह सुप्प - कत्तरं चेव विगयबीभच्छ - दंसणिज्जा, उरब्भ-पुड- संन्निभा से नासा, झुसिरा - जमल- चुल्ली - संठाण - संठिया दो वि तस्स नासा - पुडया, घोडय-पुच्छंव तस्स मंसूई कविल - कविलाई विगय-बीभच्छदंसणाई, उट्ठा उट्टस्स चेव लंबा, फाल- सरिसा से दंता, जिब्भा जह सुप्प - कत्तरं चेव विगय- बीभच्छ - दंसणिज्जा, हल- कुद्दाल-संठिया से हणुया, गल्ल-कडिल्लं व तस्स खड्डुं फुट्टं कविलं फरूसं महल्लं, मुइंगाकारोवमे से खंधे, पुरवरकवाड़ोवमे से वच्छे, कोट्ठिया-संठाणसंठिया दो वि तस्स बाहा, निसापाहाण-संठाण-संठिया दो वि तस्स अग्गहत्था, ,निसालोढसंठाणसंठियाओ हत्थेसु अंगुलीओ, सिप्पि - पुडगसंठिया से नक्खा, ण्हाविय - पसेवओ व्व उरंसि लंबंति दो वि तस्स थणया, पोट्टं अयकोट्ठओ व्व वट्टं, पाणकलंदसरिसा से नाही, सिक्कगसंठाणसंठिए से नेत्ते, किण्णपुड-संठाण - संठिया दो वि तस्स वसणा, जमल - कोट्ठियासंठाण - संठिया दो वि तस्स ऊरू, अज्जुणगुट्ठं व तस्स जाणूइं कुडिलकुडिलाई विगयबीभच्छ-दंसणाई, जंघाओ कक्खडीओ लोमेहिं उवचियाओ, अहरीसंठाण - संठिया दो वि तस्स पाया, अहरीलोढसंठाणसंठियाओ पाएसु अंगुलीओ, सिप्पिपुडसंठिया से नखा ।
उस देव ने एक विशालकाय पिशाच का रूप धारण किया। उसका विस्तृत वर्णन इस प्रकार
है-
उस पिशाच का सिर गाय को चारा देने की (औंधी की हुई) बांस की टोकरी जैसा था। बाल धान--चावल की मंजरी के तन्तुओं के समान रूखे और मोटे थे, भूरे रंग के थे, चमकीले थे । ललाट बड़े मटके के खप्पर या ठीकरे जैसा बड़ा और उभरा हुआ था । भौहें गिलहरी की पूंछ की तरह बिखरी हुई थीं, देखने में बड़ी विकृत - भद्दी और बीभत्स - घृणोत्पादक थीं 'मटकी" जैसी आँखें, सिर से बाहर निकली थीं, देखने में विकृत और बीभत्स थीं । कान टूटे हुए सूप -- छाजले के समान बड़े भद्दे और खराब दिखाई देते थे । नाक मेंढें की नाक की तरह थी - चपटी थी। गड्ढों जैसे दोनों नथुने ऐसे थे, मानों जुड़े हुए दो चूल्हे हों । घोड़े की पूछ जैसी उसकी मूंछें भूरी थीं, विकृत और बीभत्स लगती थीं 1 उसके होठ ऊंट के होठों की तरह लम्बे थे। दांत हल के लोहें की कुश जैसे थे। जीभ सूप के टुकड़े जैसी थी, देखने में विकृत तथा बीभत्स थी । ठुड्डी हल की नोक की तरह आगे निकली थी । कढ़ाही की ज्यों भीतर धंसे उसके गाल खड्डों जैसे लगते थे, फटे हुए, भूरे रंग के, कठोर तथा विकराल थे। उसके कन्धे मृदंग जैसे थे । वक्षस्थल -- छाती नगर के फाटक के समान चौड़ी थी। दोनों भुजाएं कोष्ठिका - लोहा आदि धातु गलाने में काम आने वाली मिट्टी की कोठी के समान थीं। उसकी दोनों हथेलियां मूंग आदि दलने की चक्की के पाट जैसी थीं। हाथों की अंगुलियां लोढी के समान थीं। उसके नाखून सीपियों जैसे थे-- तीखे और मोटे थे। दोनों स्तन नाई की उस्तरा आदि राछ डालने की चमड़े की थैली -- रछानी की तरह छाती पर लटक रहे थे । पेट लोहे के कोष्ठक कोठे के समान गोलाकार था । नाभि कपड़ों में
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