________________
१००]
[उपासकदशांगसूत्र १०४. तए णं से देवे हत्थि-रूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चपि तच्चपि कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी--हं भो! कामदेवा! तहेव जाव' सो वि विहरइ।
हस्तीरूपधारी देव ने जब श्रमणोपासक कामदेव को निर्भीकता से अपनी उपासना में निरत देखा तो, उसने दूसरी बार, तीसरी बार फिर श्रमणोपासक कामदेव को वैसा ही कहा, जैसा पहले कहा था। पर श्रमणोपासक कामदेव पूर्ववत् निर्भीकता से अपनी उपासना में निरत रहा।
१०५. तए णं से देवे हत्थि-रूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव' विहरमाणं पासइ, पासित्ता आसुरते ४ कामदेवं समणोवासयं सोंडाए गिण्हेइ, गेण्हेत्ता उड्ढं वेहासं उव्विहइ, उव्विहित्ता तिक्खेहिं दंत-मुसलेहिं पडिच्छइ, पडिच्छेत्ता अहे धरणि-तलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेइ।
हस्तीरूपधारी उस देव ने जब श्रमणोपासक कामदेव को निर्भीकता से उपासना में लीन देखा तो अत्यन्त क्रुद्ध होकर अपनी सूंड से उसको पकड़ा। पकड़कर आकाश में ऊंचा उछाला। उछालकर फिर नीचे गिरते हुए को तीखे और मूसल जैसे दांतों से झेला और झेल कर नीचे जमीन पर तीन बार पैरों से रौंदा।
. १०६. तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं जाव (विउयं, कक्कसं, पगाढं, चंडं, दुक्खं, दुरहियासं वेयणं सम्मं, सहइ, खमइ, तितिक्खइ,) अहियासेइ। ।
श्रमणोपासक कामदेव ने (सहनशीलता, क्षमा एवं तितिक्षापूर्वक तीव्र, विपुल, कठोर, प्रगाढ, रोद्र तथा कष्टप्रद) वेदना झेली। सर्प के रूप में उपसर्ग
१०७. तए णं से देवे हत्थि-रूवे कामदेवं समणोवासयं जाहे नो संचाएइ जाव (निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा, खोभित्तए वा, विपरिणामित्तए वा, ताहे संते, तंते, परितंते) सणियंसणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसह-सालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दिव्वं हत्थिरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं सप्प-रूवं विउव्वइ, उग्ग-विसं, चंड-विसं, घोर-विसं महाकायं, मसी-मूसा-कालगं, नयण-विस-रोस-पुण्णं, अंजण-पुंज-निगरप्पगासं, रत्तच्छं लोहिय-लोयणं, जमल-जुयल-चंचल-जीहं,धरणीयलवेणीभूयं, उक्कड-फुड-कुडिल-जडिल-कक्कस-वियड-फुडाडोव-करण-दच्छं, लोहागरधम्ममाण-धमधमेंतघोसं, अणागलिय-तिव्व-चंड-रोसं सप्प रूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता १. देखें सूत्र-संख्या ९७। २. देखें सूत्र-संख्या ९८। ३. देखें सूत्र-संख्या ९७।