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[उपासकदशांगसूत्र क्षयोपशम से जो अवधि-ज्ञान प्राप्त होता है, उसे गुण-प्रत्यय अवधि-ज्ञान कहा जाता है। वह मनुष्यों और तिर्यञ्चों में होता है। भव-प्रत्यय और गुण-प्रत्यय अवधि-ज्ञान में एक विशेष अन्तर यह है-- भव-प्रत्यय अवधि-ज्ञान देव-योनि और नरक-योनी के प्रत्येक जीव को होता है; गुण-प्रत्यय अवधिज्ञान प्रत्यय द्वारा भी मनुष्यों और तिर्यञ्चों में सबको नहीं होता, किन्हीं-किन्हीं को होता हैं, जिन्होने तदनुरूप योग्यता प्राप्त कर ली हो, जिनका अवधि-ज्ञानावरण का क्षयोपशम सधा हो।
आनन्द अपने उत्कृष्ट आत्म-बल के सहारे, पवित्र भाव तथा प्रयत्नपूर्वक वैसी स्थिति अधिगत कर चुका था, उसके अवधि-ज्ञानावरण-कर्म-पुद्गलों का क्षयोपशम हो गया था, जिसकी फलनिष्पति अवधि-ज्ञान में प्रस्फुटित हुई।
प्रस्तुत सूत्र में श्रमणोंपासक आनन्द द्वारा प्राप्त अवधि-ज्ञान के विस्तार की चर्चा करते हुए पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में लवणसमुद्र तथा उत्तर में चुल्लहिमवंत वर्षधर का उल्लेख आया है : इनका मध्यलोक से सम्बन्ध है। जैन भूगोल के अनुसार मध्यलोक के मनुष्य क्षेत्र ढाई द्वीपों तक विस्तृत है। मध्य में जम्बूद्वीप है, जो वृत्ताकार--गोल है, जिसका विष्कम्भ--व्यास एक लाख योजन है--जो एक लाख योजन लम्बा तथा एक लाख योजन चौड़ा है। जम्बूद्वीप में भरतवर्ष, हैमवतवर्ष, हरिवर्ष, विदेहवर्ष, रम्यकवर्ष, हैरण्यवतवर्ष, तथा ऐरावत वर्ष-ये सात क्षेत्र हैं। इन सातों क्षेत्रों को अलग करने वाले पूर्वपश्चिम लम्बे--हिमवान् महाहिमवान्, निषध, नील, रूक्मी तथा शिखरी--ये छह वर्षधर पर्वत हैं। जम्बूद्वीप के चारों ओर लवणसमुद्र है। लवणसमुद्र का व्यास जम्बूद्वीप से दुगुना है। लवणसमुद्र के चारों ओर धातकीखण्ड नामक द्वीप है। उनका व्यास लवणसमुद्र से दुगुना है। धातकीखण्ड के चारों ओर कालोदधि नामक समुद्र है, जिसका विस्तार धातकीखण्ड से दुगुना है। कालोदधिसमुद्र के चारों तरफ पुष्करद्वीप है। इस द्वीप के बीच में मानुषोत्तर पर्वत है। मनुष्य का आवास वहीं तक है अर्थात् जम्बूद्वीप, धातकीखंड तथा आधा पुष्करद्वीप--इन ढाई द्वीपों में मनुष्य रहते हैं।
श्रमणोपासक आनन्द को जो अवधि-ज्ञान उत्पन्न हुआ था, उससे वह जम्बूद्वीप के चारों और फैले लवणसमुद्र में पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण--इन तीनों दिशाओं में पांच सौ योजन की दूरी तक देखने लग गया था। उत्तर में वह हिमवान् वर्षधर पर्वत तक देखने लग गया था।
__जम्बूद्वीप में वर्षधर पर्वतों में पहले दो--हिमवान् तथा महाहिमवान् हैं। प्रस्तुत सूत्र में हिमवान् के लिए चुल्लहिमवंत पद का प्रयोग हुआ है। चुल्ल का अर्थ छोटा है। महाहिमवान की दृष्टि से हिमवान् के साथ यह विशेषण दिया गया है
ऊर्ध्वलोक में आनन्द द्वारा सौधर्म-कल्प तक देखे जाने का संकेत है। ऊर्ध्व लोक में निम्नांकित देवलोक अवस्थित है--
सौधर्म, ऐशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्त्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत तथा नौ ग्रैवेयक एवं पांच अनुत्तर विमान-विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध । सौधर्म इन में प्रथम देवलोक है।
अधोलोक में निम्नांकित सात नरक भूमियां है--रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा,