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प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द]
[६१ कामभोग-आशंसाप्रयोग--ऐहिक तथा पारलौकिक शब्द, रूप, रस, गन्ध तथा स्पर्शमूलक इन्द्रियसुखों को भोगने की कामना करना-ऐसी भावना रखना कि अमुक भोग्य पदार्थ मुझे प्राप्त हों।
इस अन्तिम साधना-काल में उपर्युक्त विचारों का मन में आना सर्वथा अनुचित है। इससे आन्तरिक पवित्रता बाधित होती है। जिस पुनीत और महान् लक्ष्य को लिए साधक साधना-पथ पर आरूढ होता है, इससे उस की पवित्रता घट जाती है। इसलिए साधक को इस स्थिति में बहुत ही जागरूक रहना अपेक्षित है।
यों त्याग-तितिक्षा और अध्यात्म की उच्च भावना के साथ स्वयं मृत्यु को वरण करना जैन शास्त्रों में मृत्यु-महोत्सव कहा गया है। सचमुच यह बड़ी विचित्र और प्रशंसनीय स्थिति है। जहां एक
और देखा जाता है, अनेक रोगों से जर्जर, आखिरी सांस लेता हुआ भी मनुष्य जीना चाहता है, जीने के लिए कराहता है, वहां एक यह साधक है, जो पूर्ण रूप से समभाव में लीन होकर जीवन-मरण की कामना से ऊपर उठ जाता है। . नहीं समझने वाले कभी-कभी इसे आत्महत्या की संज्ञा देने लगते हैं। वे क्यों भूल जाते है, आत्म-हत्या क्रोध, दुःख, शोक, मोह आदि उग्र मानसिक आवेगों से कोई करता है, जिसे जीवन में कोई सहारा नहीं दीखता, सब ओर अंधेरा ही अंधेरा नजर आता है। यह आत्मा की कमजोरी का घिनौना रूप है। संलेखनापूर्वक आमरण अनशन तो आत्मा का हनन नहीं, उसका विकास, उन्नयन और उत्थान है, जहां काम, क्रोध, राग, द्वेष, मोह आदि से साधक बहुत ऊँचा उठ जाता है। आनन्द द्वारा अभिग्रह
५८. तए णं से आणंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं सावय-धम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जिता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--
___ नो खलु मे भंते! कप्पइ अज्जप्पभिई अन्न-उत्थिए वा अन्न-उत्थियदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि चेइयाइं वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा, पुट्विं अणालत्तेण आलवित्तए वा संलवित्तए वा, तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अणुप्पदाउं वा, नन्नत्थ रायाभिओगेणं, गणाभिओगेणं, बलाभिओगेणं, देवयाभिओगेणं, गुरूनिग्गहेणं, वित्तिकंतारेणं। कप्पइ में समणे निग्गंथे फासुएणं एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुञ्छणेणं, पीढ-फलग-सिज्जा-संथारएणं, ओसह-भेसज्जेण य पडिलाभेमाणस्स विहरित्तए--
--त्ति कटु इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ, अभिगिण्हित्ता पसिणाई पुच्छइ, पुच्छित्ता अट्ठाई आदियइ, आदित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदइ, वंदित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ दुइपलासाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता