Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द]
[६७ अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता, तत्थ णं आणंदस्स वि समणोवासगस्स चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।
गौतम ने भगवान् महावीर को वन्दन--नमस्कार किया और पूछा-भन्ते! क्या श्रमणोपासक आनन्द देवानुप्रिय के-आपके पास मुंडित एवं परिव्रजित होने में समर्थ है?
__ भगवान् ने कहा-गौतम ! ऐसा संभव नहीं है। श्रमणोपासक आनन्द बहुत वर्षों तक श्रमणोपासकपर्याय-श्रावक-धर्म का पालन करेगा (उपासक की ग्यारह प्रतिमाओं का भली-भांति स्पर्श-अनुपालन करेगा, अन्ततः एक मास की संलेखना एवं साठ भोजन का-एक मास का अनशन आराधित कर आलोचना प्रतिक्रमण-ज्ञात-अज्ञात रूप में आचरित दोषों की आलोचना कर समाधिपूर्वक यथासमय देह-त्याग करेगा।) वह सौधर्म-कल्प में--सौधर्म नामक देवलोक में अरूणाभ नामक विमान में देव के रूप में उत्पन्न होगा। वहां अनेक देवों की आयु-स्थिति चार पल्योपम (काल का परिमाण विशेष) की होती है। श्रमणोपासक आनन्द की भी आयु-स्थिति चार पल्योपम की होगी। विवेचन
यहाँ प्रयुक्त 'पल्योपम' शब्द एक विशेष, अति दीर्घ काल का द्योतक है। जैन वाङमय में इसका बहुलता से प्रयोग हुआ है। प्रस्तुत आगम में प्रत्येक अध्ययन में श्रावकों की स्वर्गिक काल स्थिति का सूचन करने के लिए इसका प्रयोग हुआ है।
पल्य या पल्ल का अर्थ कुआ या अनाज का बहुत बड़ा कोठा है। उसके आधार पर या उसकी उपमा से काल-गणना की जाने के कारण यह कालावधि 'पल्योपम' कही जाती है।
पल्योपम के तीन भेद है--१. उद्धार-पल्योपम, २. अद्धा-पल्योपम, ३. क्षेत्र-पल्योपम । उद्धारपल्योपम--कल्पना करें, एक ऐसा अनाज का बड़ा कोठा या कुआँ हो, जो एक योजन (चार कोस) लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा हो। एक दिन से सात दिन की आयु वाले नवजात यौगलिक शिशु के बालों के अत्यन्त छोटे टुकड़े किए जाएं, उनसे ढूंस-टूंस कर उस कोठे या कुएं को अच्छी तरह दबा-दबा कर भरा जाय। भराव इतना सघन हो कि अग्नि उन्हें जला न सके, चक्रवर्ती की सेना उन पर से निकल जाय तो एक भी कण इधर से उधर न हो सके, गंगा का प्रवाह बह जाय तो उन पर कुछ असर न हो सके। यों भरे हुए कुएं में से एक-एक समय में एक-एक बाल-खंड निकाला जाय। यों निकालते-निकालते जितने काल में वह कुआँ खाली हो, उस काल-परिमाण को उद्धारपल्योपम कहा जाता है। उद्धार का अर्थ निकालना है। बालों के उद्धार या निकाले जाने के आधार पर इसकी संज्ञा उद्धार पल्योपम है। यह संख्यात समय-प्रमाण माना जाता है।
उद्धार पल्योपम के दो भेद है--सूक्ष्म एवं व्यावहारिक। उपर्युक्त वर्णन व्यावहारिक उद्धारपल्योपम का है । सूक्ष्म उद्धार-पल्योपम इस प्रकार है--
व्यावहारिक उद्धार-पल्योपम में कुएं को भरने में यौगलिग शिशु के बालों की जो चर्चा आई है, उनमें से प्रत्येक टुकड़े के असंख्यात अदृश्य खंड किए जाएँ। उन सूक्ष्म खंडों से पूर्व-वर्णित कुआँ