Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द]
[७९ मधुर तथा गन्ध सुरभि-कुसुम की गन्ध से अनन्त गुनी इष्ट एवं स्पर्श मक्खन से अनन्त गुना सुकुमार होता है।
पद्मलेश्या का रंग हरिद्रा-हल्दी के समान पीला, रस मधु से अनन्त गुना मिष्ट तथा गन्ध व स्पर्श तेजोलेश्या जैसे होते हैं।
शुक्ल लेश्या का वर्ण शंख के समान श्वेत, रस सिता--मिश्री से अनन्त गुना मिष्ट तथा गन्ध व स्पर्श तेजोलेश्या व पद्मलेश्या जैसे होते हैं।
लेश्याओं का रंग भावों की प्रशस्तता तथा अप्रशस्तता पर आधृत है। कृष्णलेश्या अत्यन्त कलुषित भावों की परिचायक है। भावों का कालुष्य ज्यों ज्यों कम होता है, वर्गों में अन्तर होता जाता है। कृष्णलेश्या से जनित भावों की कलुषितता जब कुछ कम होती है तो नीललेश्या की स्थिति आ जाती है, और कम होती है तब कापोतलेश्या की स्थिति बनती है। कृष्ण, नील और कापोत ये तीनों वर्ण अप्रशस्त भाव के सूचक हैं । इनसे अगले तीन वर्ण प्रशस्त भाव के सूचक हैं। पहली तीन लेश्याओं को अशुभ तथा अगली तीन को शुभ माना गया है।
जैसे बाह्य वातावरण, स्थान, भोजन, रहन-सहन आदि का हमारे मन पर भिन्न-भिन्न प्रकार का असर पड़ता है, उसी प्रकार भिन्न-भिन्न प्रकार के पुद्गलों का आत्मा पर भिन्न-भिन्न प्रकार का प्रभाव होना अस्वाभाविक नहीं है। प्राकृतिक चिकित्सा-क्षेत्र में भी यह तथ्य सुविदित है। अनेक मनोरोगों की चिकित्सा में विभिन्न रंगों की रश्मियों का अथवा विभिन्न रंगों की शीशियों के जलों का उपयोग किया जाता है । कई ऐसे विशाल चिकित्सालय भी बने हैं। गुजरात में जामनगर का 'सोलेरियम' एशिया का इस कोटि का सुप्रसिद्ध चिकित्सा-केन्द्र है।
जैनदर्शन के अतिरिक्त अन्यान्य भारतीय दर्शनों में भी अन्तर्भावों का आत्म-परिणामों के सन्दर्भ में अनेक रंगों की परिकल्पना है। उदाहरणार्थ, सांख्यदर्शन में सत्त्व, रजस् और तमस् ये तीन गुण माने गए हैं। तीनों के तीन रंगों की भी अनेक सांख्य-ग्रन्थों में चर्चा है । ईश्वरकृष्णरचित सांख्यकारिका की सुप्रसिद्ध टीका सांख्य-तत्त्व-कौमुदीके लेखक वाचस्पति मिश्र ने अपनी टीका के प्रारंभ में अजाअन्य से अनुत्पन्न-प्रकृति को अजा-बकरी से उपमित करते हुए उसे लोहित, शुक्ल तथा कृष्ण बतलाया है। लोहित--लाल, शुक्ल--सफेद और कृष्ण--काला, ये सांख्यदर्शन में स्वीकृत रजस्, सत्त्व, तमस्--तीनों गुणों के रंग हैं । रजोगुण मन को राग-रंजित या मोह-रंजित करता है, इसलिए वह लोहित है, सत्त्वगुण मन को निर्मल या मल रहित बनाता है, इसलिए वह शुक्ल है, तमोगुण अन्धकाररूप है, ज्ञान पर आवरण डालता है, इसलिए वह कृष्ण है। लेश्याओं से सांख्यदर्शन का यह प्रसंग तुलनीय है। १. अजामेकां लोहि तशुक्लकृष्णां
वह्वीः प्रजाः सृजमानां नमामः। अजा ये तां जुषमाणां भजन्ते , जहत्येनां भुक्तभोगां नुमस्तान् ॥