Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द ]
[ ७७
७३. तए णं तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स अन्नया कयाई पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झत्थिए - एवं खलु अहं इमेणं जाव (एयारूवेणं, उरालेणं, विउलेणं, पयत्तेणं, पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के, लुक्खे, निम्मंसे, अट्ठि - चम्पावण किडिकिडियाभूए, किसे, ) धमणिसंतए जाए ।
तं अत्थिता मे उट्ठाणे, कम्मे, बले, वीरिए, पुरिसक्कारपरक्कमे, सद्धा, धिई, संवेगे। तं जाव ता मे अत्थि उट्ठाणे सद्धा धिई संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए, धम्मोवएसए, समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरड़, ताव ता मे सेयं कल्लं जाव' जलंते अपच्छिम - मारणंतियसंलेहणा - झूसणा-झूसियस्स, भत्त- पाण- पडियाइक्खियस्य कालं अणवकं खमाणस्स विहरित्तए । एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं जाव' अपच्छिममारणंतिय जाव (संलेहणा-झूसणाझूसिए, भत्त - पाण- पडियाइक्खिए, ) कालं अणवकंखमाणे विहरइ ।
एक दिन आधी रात के बाद धर्मजागरण करते हुए आनन्द के मन में ऐसा अन्तर्भाव या संकल्प उत्पन्न हुआ-- [ इस प्रकार श्रावक - प्रतिमा आदि के रूप में स्वीकृत उत्कृष्ट, विपुल साधनोचित प्रयत्न तथा तपश्चरण से मेरा शरीर सूख गया है, रूक्ष हो गया है, उस पर मांस नही रहा है, हड्डियां और चमड़ी मात्र बची रही है, हड्डियां आपस में भिड़-भिड़ कर आवाज करने लगी हैं,] शरीर में इतनी कृशता आ गई है कि उस पर उभरी हुई नाड़ियां दीखने लगी हैं ।
मुझ में उत्थान-- - धर्मोन्मुख उत्साह, कर्म -- -- तदनुरूप प्रवृत्ति, बल-- शारीरिक शक्ति - दृढता, वीर्य-आन्तरिक ओज, पुरूषाकार पराक्रम -- पुरूषोचित पराक्रम या अन्तःशक्ति, श्रद्धा -- धर्म के प्रति आस्था, धृति--सहिष्णुता, संवेग--मुमुक्षुभाव है। जब तक मुझमें यह सब है तथा जब तक मेरे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक, जिन --राग-द्वेष - विजेता, सुहस्ती श्रमण भगवान् महावीर विचरण कर रहे हैं, तब तक मेरे लिए यह श्रेयस्कर है कि मैं कल सूर्योदय होने पर अन्तिम मारणान्तिक संलेखना स्वीकार कर लूं, खान-पान का प्रत्याख्यान -- परित्याग कर दूं, मरण की कामना न करता हुआ, आराधनारत हो जाऊं -- शान्तिपूर्वक अपना अन्तिम काल व्यतीत करूं ।
आनन्द ने यों चिन्तन किया । चिन्तन कर दूसरे दिन सवेरे अन्तिम मारणान्तिक संलेखना स्वीकार की, खान-पान का परित्याग किया, मृत्यु की कामना न करता हुआ वह आराधना में लीन हो
गया।
७४. तए णं तस्स आणंदस समणोवासगस्स अन्नया कयाइ सुभेणं अज्झवसाणेणं, सुभेणं परिणामेणं, लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं, तदावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ओहिनाणे समुप्पन्ने। पुरत्थिमे णं लवण-समुद्दे पंच-जोयणसयाइं खेत्तं जाणइ पासइ, एवं दक्खिणे
१. देखें सूत्र - संख्या ६६ ।
२. देखें सूत्र - संख्या ६६ ।
३.
भगवान महावीर का एक उत्कर्ष-सूचक विशेषण ।