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प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द]
[७५ प्रतिमा स्वीकार कर प्रतिदिन नियमतः तीन बार सामायिक करता है। इस प्रतिमा में वह सामायिक एवं देशावकाशिक व्रत का सम्यक् रूप में पालन करता है, पर अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या तथा पूर्णिमा आदि विशिष्ट दिनों में पोषधोपवास की भली-भांति आराधना नहीं कर पाता।
तन्मयता एवं जागरुकता के साथ सामायिक व्रत की उपासना इस प्रतिमा का अभिप्रेत है। इसकी आराधना की अवधि तीन मास की है।
४. पोषधप्रतिमा--प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय प्रतिमा से आगे बढ़ता हुआ आराधक पोषध - प्रतिमा स्वीकार कर अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्व-तिथियों पर पोषध-व्रत का पूर्णरूपेण पालन करता है। इस प्रतिमा की आराधना का समय चार मास है।
५. कायोत्सर्गप्रतिमा--कायोत्सर्ग का अर्थ काय या शरीर का त्याग है। शरीर तो यावज्जीवन साथ रहता है, उसके त्याग का अभिप्राय उसके साथ रही आसक्ति या ममता को छोड़ना है। कायोत्सर्गप्रतिमा में उपासक शरीर, वस्त्र आदि का ध्यान छोड़कर अपने को आत्म-चिन्तन में लगाता है । अष्टमी एवं चतुर्दशी के दिन रात भर कायोत्सर्ग या ध्यान की आराधना करता है। इस प्रतिमा की अवधि एक दिन, दो दिन अथवा तीन दिन से लेकर अधिक से अधिक पांच मास की है। इसमें रात्रि-भोजन का त्याग रहता है। दिन में ब्रह्मचर्य व्रत रखा जाता है। रात्रि में अब्रह्मचर्य का परिमाण किया जाता है।
६. ब्रह्मचर्यप्रतिमा--इसमें पूर्णरूपेण ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है। स्त्रियों से अनावश्यक मेलजोल, बातचीत, उनकी श्रृंगारित चेष्टाओं का अवलोकन आदि इसमें वर्जित है। उपासक स्वयं भी श्रृंगारिक वेशभूषा व उपक्रम से दूर रहता है।
इस प्रतिमा में उपासक सचित्त आहार का त्याग नहीं करता। कारणवश वह सचित्त का सेवन करता है।
इस प्रतिमा की आराधना का काल-मान न्यूनतम एक दिन, दो दिन या तीन दिन तथा उत्कृष्ट छह मास है।
[इसमें जीवन-पर्यन्त ब्रह्मचर्य स्वीकार किये रहने का भी विधान है।]
७. सचिताहारवर्जनप्रतिमा--पूर्वोक्त नियमों का परिपालन करता हुआ, परिपूर्ण ब्रह्मचर्य का अनुसरण करता हुआ उपासक इस प्रतिमा में सचित आहार का सर्वथा त्याग कर देता है, पर वह आरम्भ का त्याग नहीं कर पाता।
इस प्रतिमा की आराधना का उत्कृष्ट काल सात मास का है।
८. स्वयं-आरम्भ-वर्जन-प्रतिमा--पूर्वोक्त सभी नियमों का पालन करते हुए इस प्रतिमा में उपासक स्वयं किसी प्रकार का आरम्भ या हिंसा नहीं करता। इतना विकल्प इसमें है--आजीविका या निर्वाह के लिए दूसरे से आरम्भ कराने का उसे त्याग नहीं होता।
इस प्रतिमा की आराधना की अवधि न्यूनतम एक दिन, दो दिन या तीन दिन तथा उत्कृष्ट आठ मास है।