Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ उपासकदशांगसूत्र
७८]
णं पच्चत्थिमे ण य, उत्तरे णं जाव चुल्लहिमवंतं वासधरपव्वयं जाणइ, पासइ, उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं जाणइ पासइ, अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुयं नरयं चउरासीइवाससहस्सट्ठिइयं जाणइ पासइ ।
तत्पश्चात् श्रमणोपासक आनन्द को एक दिन शुभ अध्यवसाय -- मन:संकल्प, शुभ परिणाम-अन्तः परिणति, विशुद्ध होती हुई लेश्याओं -- पुद्गल द्रव्य के संसर्ग से होने वाले आत्म-परिणामों या विचारों के कारण, अवधि - ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से अवधि- ज्ञान उत्पन्न हो गया । फलत: वह पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में पांच सौ, पांच सौ योजन तक का लवण समुद्र का क्षेत्र, उत्तर दिशा में चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत तक का क्षेत्र, उर्ध्व दिशा में सौधर्म कल्प -- प्रथम देवलोक तक तथा अधोदिशा में प्रथम नारक - भूमि रत्नप्रभा में चौरासी हजार वर्ष की स्थिति युक्त, लोलुपाच्युत नामक नरक तक जानने लगा, देखने लगा ।
विवेचन
लेश्याएं -- प्रस्तुत सूत्र में श्रमणोपासक आनन्द का अवधि- ज्ञान उत्पन्न होने के सन्दर्भ में शुभ अध्यवसाय तथा शुभ परिणाम के साथ-साथ विशुद्ध होती हुई लेश्याओं का उल्लेख है । लेश्या जैन दर्शन का एक विशिष्ट तत्त्व है, जिस पर बड़ा गहन विश्लेषण हुआ है। लेश्या का तात्पर्य पुद्गल द्रव्य के संसर्ग से होने वाले आत्मा के परिणाम या विचार हैं। प्रश्न हो सकता है, आत्मा चेतन है, पुद्गल जड़ है, फिर जड़ के संसर्ग से चेतन में परिणाम - विशेष का उद्भव कैसे संभव है ? यहाँ ज्ञातव्य है कि यद्यपि आत्मा जड़ से सर्वथा भिन्न है, पर संसारावस्था में उसका जड़ पुद्गल के साथ गहरा संसर्ग है। अतः पुद्गल-जनित परिणामों का जीव पर प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता। जिन पुद्गलों से आत्मा के परिणाम प्रभावित होते हैं, उन पुद्गलों को द्रव्य - लेश्या कहा जाता है। आत्मा में जो परिणाम उत्पन्न होते हैं, उन्हें भाव - लेश्या कहा जाता है।
द्रव्य-लेश्या पुद्गलात्मक है, इसलिए उसमें वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श स्वीकार किया गया है । द्रव्य-लेश्याओं के जो वर्ण माने गए हैं, लेश्याओं का नामकरण उनके आधार पर हुआ है। लेश्याएं छह हैं : कृष्ण-लेश्या, नील- लेश्या, कापोत- लेश्या, तेजो- लेश्या, पद्म- लेश्या तथा शुक्ल- लेश्या ।
कृष्णलेश्या का वर्ण काजल के समान काला, रस नीम से अनन्त गुना कटु, गन्ध मरे हुए सांप की गन्ध से अनन्त गुनी अनिष्ट तथा स्पर्श गाय की जिह्वा से अनन्त गुना कर्कश है।
नीलेश्या का वर्ण नीलम के समान नीला, रस सौंठ से अनन्त गुना तीक्ष्ण, गन्ध एवं स्पर्श कृष्णलेश्या जैसे होते हैं ।
कापोतलेश्या का वर्ण कपोत - कबूतर के गले के समान, रस कच्चे आम के रस से अनन्त गुना तिक्त तथा गन्ध व स्पर्श कृष्ण व नील लेश्या जैसे होते हैं ।
तेजोलेश्या का वर्ण हिंगुल या सिन्दूर के समान रक्त, रस पक्के आम के रस से अनन्त गुना