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[उपासकदशांगसूत्र ढूंस-ठूस कर भरा जाय। वैसा कर लिये जाने पर प्रतिसमय एक-एक खंड कुएं में से निकाला जाय, यो करते-करते जितने काल में वह कुआँ, बिलकुल खाली हो जाय, उस काल-अवधि को सूक्ष्म उद्धारपल्योपम कहा जाता है। इसमें संख्यात-वर्ष-कोटि परिमाण-काल माना जाता है।
अद्धा-पल्योपम--अद्धा देशी शब्द है, जिसका अर्थ काल या समय है। आगम के प्रस्तुत प्रसंग में जो पल्योपम का जिक्र आया है, उसका आशय इसी पल्योपम से है। इसकी गणना का क्रम इस प्रकार है--यौगलिक के बालों के टुकड़ों से भरे हुए कुएं में से सौ-सौ वर्ष में एक-एक टुकड़ा निकाला जाय। इस प्रकार निकालते-निकालते जितने काल में वह कुआँ बिलकुल खाली हो जाय, उस कालावधि को अद्धा-पल्योपम कहा जाता है। इसका परिमाण संख्यात वर्षकोटि है।
_अद्धा-पल्योपम भी दो प्रकार का होता है-सूक्ष्म और व्यावहारिक। यहां जो वर्णन किया गया है, वह व्यावहारिक अद्धा-पल्योपम का है। जिस प्रकार सूक्ष्म उद्धार-पल्योपम में यौगलिक शिशु के बालों के टुकड़ों के असंख्यात अदृश्य खंड किए जाने की बात है, तत्सदृश यहां भी वैसे ही असंख्यात अदृश्य केश-खंड़ों से वह कुआँ भरा जाय। प्रति सौ वर्ष में एक खंड निकाला जाए। यों निकालते निकालते जब कुआँ बिलकुल खाली हो जाय, वैसा होने में जितना काल लगे, वह सूक्ष्म अद्धापल्योपम कोटी में आता है। इसका काल-परिमाण असंख्यात वर्षकोटि माना गया है।
क्षेत्र-पल्योपम--ऊपर जिस कुएं या धन के विशाल लोठे की चर्चा है, यौगलिक के बालखंडों से उपर्युक्त रूप में दबा-दबा कर भर दिये जाने पर भी उन खंडों के बीच में आकाश-प्रदेशरिक्त स्थान रह जाते हैं। वे खंड चाहे कितने ही छोटे हों, आखिर वे रूपी या मूर्त हैं, आकाश अरूपी या अमूर्त है। स्थूल रूप में उन खंडों के बीच रहे आकाश-प्रदेशों की कल्पना नहीं का जा सकती, पर सूक्ष्मता से सोचने पर वैसा नहीं है। इसे एक स्थूल उदाहरण से समझा जा सकता है--कल्पना करें, अनाज के एक बहुत बड़े कोठे को कूष्मांडों कुम्हड़ों से भर दिया गया। सामान्यतः देखने में लगता है, वह कोठा भरा हुआ है, उसमें कोई स्थान खाली नहीं है, पर यदि उसमें नींबू और भरे जाए तो वे अच्छी तरह समा सकते हैं। क्योंकि सटे हुए कुम्हडों के बीच में स्थान खाली जो है। यों नींबुओं से भरे जाने पर भी सूक्ष्म रूप में और खाली स्थान रह जाता है, बाहर से वैसा लगता नहीं। यदि उस कोठे में सरसों भरना चाहें तो वे भी समा जाएं । सरसों भरने पर भी सूक्ष्म रूप में और स्थान खाली रहता है। यदि नदी के रजःकण उसमें भरे जाएं, तो वे भी समा सकते हैं।
दूसरा उदाहरण दीवाल का है। चुनी हुई दीवाल में हमें कोई खाली स्थान प्रतीत नहीं होता पर उसमें हम अनेक खूटियाँ, कीलें गाड़ सकते हैं। यदि वास्तव में दीवाल में स्थान खाली नही होता तो यह कभी संभव नहीं था। दीवाल में स्थान खाली है, मोटे रूप में हमें मालूम नहीं पड़ता। अस्तु।
क्षेत्र-पल्योपम की चर्चा के अन्तर्गत यौगलिक के बालों के खंडों के बीच-बीच में जो आकाश-प्रदेश होने की बात है, उसे भी इसी दृष्टि से समझा जा सकता है। योगलिक के बालों के खंडों को संस्पृष्ट करने वाले आकाश-प्रदेशों में से प्रत्येक को प्रतिसमय निकालने की कल्पना की जाय। यों निकालते-निकालते जब सभी आकाश-प्रदेश निकाल लिये जाएं, कुआँ बिलकुल खाली हो जाय, वैसा