Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द]
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संवरण करना होता है । इस अभ्यास में यह व्रत बहुत सहायक है। पोषधोपवास-व्रत के अतिचार
५५. तयाणंतरं च णं पोसहोववासस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा-अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहियसिज्जासंथारे, अप्पमज्जियदुप्पमज्जियसिज्जासंथारे, अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहियउच्चारपासवणभूमी, अप्पमज्यिदुप्पमज्जियउच्चारपासवणभूमि, पोसहोववासस्स सम्म अणणुपालणया।
___ तदनन्तर श्रमणोपासक को पोषधोपवास व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए। वे इस प्रकार हैं--
अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित--शय्या-संस्तारक, अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित--शय्या-संस्तारक, अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित-उच्चारप्रस्त्रवणभूमि, अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित-उच्चारप्रस्त्रवणभूमि तथा पोषधोपवास--सम्यक--अननुपालन विवेचन
• पोषधोपवास में पोषध एवं उपवास, ये दो शब्द है। पोषध का अर्थ धर्म को पोष या पुष्टि देने वाली क्रिया-विशेष है। उपवास उप उपसर्ग और वास शब्द से बना है। उप का अर्थ समीप है। उपावास का शाब्दिक तात्पर्य आत्मा या आत्मगुणों के समीप वास या अवस्थिति है। आत्मगुणों का सामीप्य या सान्निध्य साधने के कुछ समय के लिए ही सही, बहिर्मुखता निरस्त होती है । बहिर्मुखता या देहोन्मुखता में सबसे अधिक आवश्यक और महत्त्वपूर्ण भोजन है। साधक जब आत्म-तन्मयता में होता है तो भोजन आदि बाह्य वृत्तियों से सहज ही दूर हो जाता है। यह उपवास का तात्त्विक विवेचन है। व्यावहारिक दृष्टि से सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक अर्थात् चौबीस घंटे के लिए अशन, पान, खादिम, स्वादिम आहार का त्याग उपवास है। पोषध और उपवास रूप सम्मिलित साधना का अर्थ यह है कि उपवासी उपासक एक सीमित समय-चौबीस घंटे के लिए घर से संबंध तोड़ कर-लगभग साधुवत् होकर एक निश्चित स्थान में निवास करता है। सोने, बैठने, शौच, लघु-शंका आदि के लिए भी स्थान निश्चित कर लेता है । आवश्यक, सीमित उपकरणों को साधु की तरह यतना या सावधानी से रखता है, जिससे हिंसा से बचा जा सके।
श्रावक या उपासक के तीन मनोरथों में एक है--"कया णमहं मुडे भवित्ता पव्वइस्सामि"मेरे जीवन में वह अवसर कब आएगा, जब मैं मुंडित होकर प्रवजित होऊँगा। इस मनोरथ या उच्च भावना के परिपोषण व विकास में यह व्रत सहायक है। श्रमण-साधना के अभ्यास का यह एक व्यावहारिक रूप है। जिस तरह एक श्रमण अपने जीवन की हर प्रवृत्ति में जागरूक और सावधान रहता है, उपासक भी इस व्रत में वैसा ही करता है।
पोषधोपवास व्रत में सामान्यतः ये चार बातें मुख्य है--