Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द ]
[ ३५
सकता है, उसने अपवाद नहीं रखा हो । सामान्यतः सचित्त रूप में सभी फलों को अस्वीकार्य माना हो । इस सम्बन्ध में डा. रूडोल्फ हार्नले ने भी चर्चा की है। उन्होंने भी इसी तरह का संकेत दिया है।
२५. तयाणंतरं च णं अब्भंगणविहिपरिमाणं करेइ । नन्नत्थ समपागसहस्सपागेहिं तल्लेहिं अवसेसं अब्भंगणविहिं पच्चक्खामि ।
उसके बाद उसने अभ्यंगन-विधि का परिमाण किया --
शतपाक तथा सहस्त्रपाक तैलों के अतिरिक्त मैं और सभी अभ्यंगनविधि - मालिश के तैलों का परित्याग करता हूं।
विवेचन
शतपाक या सहस्त्रपाक तैल कोई विशिष्ट मूल्यावान् तैल रहे होंगे, जिनमें बहुमूल्य औषधियां पड़ी हों । आचार्य अभयदेव सूरि द्वारा वृत्ति में इस संबंध में किए गए संकेत के अनुसार शतपाक तैल रहा हो, जिसमें १०० प्रकार के द्रव्य पड़े हों, जो सौ दफा पकाया गया हो अथवा जिसका मूल्य सौ कार्षापण रहा हो। कार्षापण प्राचीन भारत में प्रयुक्त एक सिक्का था । वह सोना, चांदी व तांबा इनका अलग-अलग तीन प्रकार का होता था । प्रयुक्त धातु के अनुसार वह स्वर्ण-कार्षापण रजत- कार्षापण या ताम्र- कार्षापण कहा जाता रहा था। स्वर्ण- कार्षापण का वजन १६ मासे, रजत- कार्षापण का वजन १६ पण [तोल विशेष ] और ताम्र- कार्षापण का वजन ८० रत्ती होता था । २
सौ के स्थान पर जहाँ यह क्रम सहस्त्र में आ जाता है, वहां वह तैल सहस्त्रपाक कहा जाता है। २६. तयाणंतरं च णं उव्वट्टणविहिपरिमाणं करेइ । नन्नत्थ एकेणं सुरहिणा गंधट्टएणं, अवसेसं उव्वट्टणविहिं पच्चक्खामि ।
इसके बाद उसने उबटन - विधि का परिमाण किया --
एक मात्र सुगन्धित गंधाटक--गेहूँ आदि के आटे के साथ कतिपय सौगन्धिक पदार्थों को मिलाकर तैयार की गई पीठी के अतिरिक्त अन्य सभी उबटनों का मैं परित्याग करता हूं ।
२७. तयाणंतरं च णं मज्जणविहिपरिमाणं करेइ । नन्नत्थ अट्ठहिं उट्टिएहिं उदगस्स घडेहिं अवसेसं मज्जणविहिं पच्चक्खामि ।
उसके बाद उसने स्नान विधि का परिमाण दिया---
-पानी के आठ औष्ट्रिक-ऊंट के आकार के घड़े, जिनका मुंह ऊंट की तरह संकड़ा, गर्दन लम्बी और आकार बड़ा हो, के अतिरिक्त स्नानार्थ जल का परित्याग करता हूं ।
२८. तयाणंतरं च णं वत्थविहिपरिमाणं करेइ । नन्नत्थ एगेणं खोम - जुयलेणं, अवसेसं
१. Uvasagadasao, Lecture I pages 15, 16
२. संस्कृत-इंगलिश डिक्शनरी-सर मोनियर विलियम्स, पृ. १७६