Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द]
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[३९
यह उन्माद, अलक्ष्मी--कान्ति-विहीनता, अपस्मार तथा पाप--देह-कलुषता--इन रोगों को नष्ट करता है।"१
इस परिपार्श्व में चिन्तन करने से यह स्पष्ट होता है कि आनन्द वर्ष भर शरद् ऋतु के गो-घृत का ही उपयोग करता था। आज भी जिनके यहां गो-धन की प्रचुरता है, वर्षभर घृत का संग्रह रखा जाता है। एक विशेष बात और है, वर्षा आदि अन्य ऋतुओं का घृत टिकाऊ भी नही होता शरद् ऋतु का ही घृत टिकाऊ होता है। इस टिकाऊपन का खास कारण गाय का आहार है,जो शरद् ऋतु में अच्छी परिपक्वता और रस-स्निग्धता लिए रहता है।
३८. तयाणंतरं च णं सागविहिपरिमाणं करेइ। नन्नत्थ वत्थुसाएण वा, तुंबसाएण वा, सुत्थियसाएण वा, मंडुक्कियसाएण वा, अवसेसं सावविहिं पच्चक्खामि।
तदनन्तर उसने शाकविधि का परिमाण किया--
बथुआ, लौकी, सुआपालक तथा भिंडी--इन सागों के सिवाय और सब प्रकार के सागों का परित्याग करता हूं।
३९. तयाणंतरं च णं माहुरयविहिपरिमाणं करेइ। नन्नत्थ एगेणं पालंगामहुरएणं, अवसेसें माहुरयविहिं पच्चक्खामि। ___ तत्पश्चात् उसने माधुरकविधि का परिमाण किया--
मैं पालंग माधुरक-शल्लकी (वृक्ष-विशेष) के गोंद से बनाए मधुर पेय के सिवाय अन्य सभी मधुर पेयों का परित्याग करता हूं।'
४०. तयाणंतरं च णं जेमणविहिपरिमाणं करेइ। नन्नत्थ सेहंबदालियंबेहिं, अवसेसं जेमणविहिं पच्चक्खामि।
उसके बाद उसने व्यंजनविधि का परिमाण किया-- ___ मैं कांजी बड़े तथा खटाई पड़े मूंग आदि की दाल के पकौड़ों के सिवाय सब प्रकार के व्यंजनों-चटकीले पदार्थों का परित्याग करता हूं।
४१. तयाणंतरं च णं पाणियविहिपरिमाणं करेइ। नन्नत्थ एगेणं अंतलिक्खोदएणं,
ब्राह्मरसवचाकुष्ठशङ्कपुष्पीभिरेव च। पुराणं घृतमुन्मादालक्ष्म्यमपस्मारपाप्मजित्॥
--चरकसंहिता, चिकित्सास्थान १०.२४ । २. किन्हीं मनीषी ने दिन के विभाग विशेष की शरद माना है और उस विभाग विशेष में निष्पन्न घी को शारदिक घृत
माना है। ३. परम्परागत-अर्थ की अपेक्षा से माधुरकविधि का अर्थ फल विधि है जिसमें फल के साथ मेवे भी गर्भित हैं और
पालंग का अर्थ लताजनित आम है। किन्हीं में इसका अर्थ खिरणी (रायण-फल) भी किया है।