Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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४०]
[उपासकदशांगसूत्र
अवसेसं पाणियविहिं पच्चक्खामि।
तत्पश्चात् उसने पीने के पानी का परिमाण किया--
मैं एक मात्र आकाश से गिरे--वर्षा के पानी के सिवाय अन्य सब प्रकार के पानी का परित्याग करता हूं।
४२. तयाणंतरं च णं मुहवासविहिपरिमाणं करेइ। नन्नत्थ पंच-सोगंधिएणं तंबोलेणं, अवसेसं मुहवासविहिं पच्चक्खामि।
तत्पश्चात् उसने मुखवासविधि का परिमाण किया--
पांच सुगन्धित वस्तुओं से युक्त पान के सिवाय मैं मुख को सुगन्धित करने वाले बाकी सभी पदार्थों का परित्याग करता हूं। विवेचन
वृत्तिकार आचार्य अभयदेव सूरि ने पांच सुगन्धित वस्तुओं में इलायची, लौंग, कपूर, दालचीनी तथा जायफल का उल्लेख किया है। ऐसा प्रतीत होता है, समृद्ध जन पान में इनका प्रयोग करते रहे हैं। सुगन्धित होने के साथ साथ स्वास्थ्य की दृष्टि से भी ये लाभकर हैं। अनर्थदण्ड-विरमण
४३. तयाणंतरं च णं चउव्विहं अणट्ठादंडं पच्चक्खाइ।तं जहा-अवज्झाणायरियं, पमायायरियं, हिंसप्पयाणं, पावकम्मोवएसे।।
तत्पश्चात उसने चार प्रकार के अनर्थदण्ड-अपध्यानाचरित, प्रमादाचरित, हिंस्त्र-प्रदान तथा पापकर्मोपदेश का प्रत्याख्यान किया।
विवेचन
बिना किसी उद्देश्य के जो हिंसा की जाती है, उसका समावेश अनर्थदण्ड में होता है । यद्यपि हिंसा तो हिंसा ही है, पर जो लौकिक दृष्टि से आवश्यकता या प्रयोजनवश की जाती है, उसमें तथा निरर्थक की जाने वाली हिंसा में बड़ा भेद है। आवश्यकता या प्रयोजनवश हिंसा करने को जब व्यक्ति बाध्य होता है तो उसकी विवशता देखते उसे व्यावहारिक दृष्टि से क्षम्य भी माना जा सकता है पर जो प्रयोजन या मतलब के बिना हिंसा आदि का आचरण करता है, वह सर्वथा अनुचित है। इसलिए उसे अनर्थदंड कहा जाता है।
वृत्तिकार आचार्य अभयदेव सूरि ने धर्म, अर्थ तथा काम रूप प्रयोजन के बिना किये जाने वाले हिंसापूर्ण कार्यों का अनर्थदंड कहा है।
अनर्थदंड के अन्तर्गत लिए गए अपध्यानाचरित का अर्थ है--दुश्चिन्तन । दुश्चिन्तन भी एक प्रकार से हिंसा ही है। वह आत्मगुणों का घात करता है। दुश्चिन्तन दो प्रकार का है --आर्त्तध्यान तथा