Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni Publisher: Agam Prakashan SamitiPage 58
________________ प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द] [१७ -रवि-किरण-तरूण--बोहिय--अकोसायंत--पउम--गंभीर--वियड-णाभे, साहय-- सोणंद--मुसल--दप्पण-णिकरिय-वर-कणग-च्छरू-सरिस-वर-वइर-वलिअ--मज्झे पमुइय--वर--तुरय-सीह-वर-वट्टिय-कडी, वरतुरग-सुजाय-गुज्झ-देशे, आइणहउच्च-णिरूवलेवे,वर-वारण-तुल्ल--विक्कम--विलसिय-गई,गय-ससण-सुजाय-सन्निभोरू, समुग्ग-णिमग्ग-गूढ-जाणू, एणी--कुरूविंदावत्त--वट्टाणुपुव्व--जंघे, संठिय--सुसिलिट्ठगूढ-गुप्फे, सुपइट्ठिय--कुम्म--चारू--चलणे, अणुपुव्व-सुसंहयंगुलीए, उण्णय--तणु-तंब-णिद्ध-णक्खे, रत्तुप्पल-पत--मउअ--सुकुमाल कोमल-तले, अट्ठ-सहस्स-वरपुरिस-लक्खणधरे, नग-नगर-मगर-सागर-चक्कंक--वरंक-मंगलंकय--चलणे, विसिट्ठ-रूवे, हुयवह--निळूम--जलिय--तडि-तडिय-तरूण-रवि-किरण-सरिस-तेए, अणासवे, अममे, अकिंचणे, छिन्न--सोए, निरूवलेवे, ववगय-पेम-राग-दोस-मोहे, निग्गंथस्स पवयणस्स देसए, सत्थ-नायगे, पइट्ठावए, समणग--पई, समण-विंद-परिअट्टए चउत्तीस--बद्ध--वयणातिसेसपत्ते, पणतीस-सच्च-वयणातिसे-सपत्ते. आगास-गएणं चक्केणं, आगास-गएणं छत्तेणं, आगास-गयाहिं सेय चामराहिं, आगास-फलिआ-गएणं, सपायपीढेणं, सीहासणेणं, धम्मज्झएणं पुरओ पकढिजमाणेणं, चउद्दसहिंसमण-- सहस्सीहिं, छतीसाए अज्जिया- सहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे, पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे ) समोसरिए। परिसा निग्गया कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ। निग्गच्छित्ता जाव (जेणेव दूइपलासए चेइए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्ताईए तित्थयरातिसेसे पासइ, पासित्ता आभिसेक्कं हत्थि-रयणं ठवेइ, ठवित्ता आभिसेक्काओ हत्थि-रयणाओ पच्चोरूहइ, आभिसेक्काओ हत्थि-रयणाओ पच्चोरूहित्ता अवहटु पंच-राय-ककुहाइं, तं जहा--खग्गं, छत्तं उप्फेसं, वाहणाओ, बालवीयणं, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव, उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, तं जहा--सच्चित्ताणं दव्वाणं विउसरणयाए, अच्चित्ताणं दव्वाणं अविउसरणयाए, एगसाडियं उत्तरासंगं करणेणं, चक्खुफासे अंजलि-पग्गहेणं, मणसो एगत्तभाव-करणेणं समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ, तं जहा--काइआए, वाइआए, माणसिआए। काइआए ताव संकुइयग्गहत्थपाए, सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ, वाइआए--जं जं भगवं वागरेइ, तं तं एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह, अपडिकूलमाणे पज्जुवासइ, माणसियाए महया संवेगं जणइत्ता तिव्व-धम्माणुराग-रत्ते)Page Navigation
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