Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द ]
[ २१
की तरह भगवान् के दर्शन वन्दन के लिए निकला, [दूतीपलाश चैत्य में आया ।] आकर भगवान् के न अधिक दूर न अधिक निकट - - समुचित स्थान पर रूका । तीर्थंकरों के छत्र आदि - अतिशयों को देख कर अपनी सवारी के प्रमुख उत्तम हाथी को ठहराया, हाथी से नीचे उतरा, उतर कर तलवार, छत्र, मुकुट, चंवर -- इन राज-चिह्नों को अलग किया, जूते उतारे । भगवान् महावीर जहां थे वहां आया। आकर, सचित--पदार्थों का व्युत्सर्जन --अलग करना, अचित्त--अजीव पदार्थो का अव्युत्-सर्जन -- अलग न करना अखण्ड -- अनसिले वस्त्र -- का उत्तरासंग -- उत्तरीय की तरह कन्धे पर डाल कर धारण करना, धर्म- नायक पर दृष्टि पड़ते ही हाथ जोड़ना, मन को एकाग्र करना--इन पांच नियमों के अनुपालनपूर्वक राजा जितशत्रु भगवान् के सम्मुख गया। भगवान् को तीन बार आदक्षिण-- प्रदक्षिणा कर वन्दना की, नमस्कार किया । वन्दना, नमस्कार कर कायिक, वाचिक, मानविक रूप से पर्युपासना की । कायिक पर्युपासना के रूप में हाथ-पैरों को संकुचित किए हुए - - सिकोड़े हुए, शुश्रूषा -- सुनने की इच्छा करते हुए भगवान् की ओर मुंह किये, विनय से हाथ जोड़े हुए स्थित रहा । वाचिक पुर्वपासना के रूप में-- जो-जो भगवान् बोलते थे, उसके लिए यह ऐसा ही है भन्ते ! यही तथ्य है भगवन् ! यही सत्य है प्रभो ! यही सन्देह - रहित है स्वामी ! यही इच्छित है भन्ते ! यही प्रतीच्छित -- स्वीकृत है, प्रभो! यही इच्छित -- प्रतीच्छित है भन्ते ! जैसा आप कह रहे हैं ! इस प्रकार अनुकूल वचन बोलता रहा ! मानसिक पर्युपासना के रूप में अपने में अत्यन्त संवेग --मुमुक्षु भाव उत्पन्न करता हुआ तीव्र धर्मानुराग से अनुरक्त
रहा।
आनन्द द्वारा वन्दन
१०. तए णं से आणंदे गाहावई इमीसे कहाए लट्ठे समाणे -- एवं खलु समणे जाव (भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे इहमागए, इह संपत्ते, इह समोसढे, इहेव वाणियगामस्स नयरस्स बहिया दूइपलासए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे ) विहरइ, तं महफ्फलं जाव (खलु भो! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णाम- गोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण - णमंसण- पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ! एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अठ्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि गं देवाप्पा! समणं भगवं महावीरं वंदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि ) -
एवं संपेहेइ, संपेहित्ता पहाए, सुद्धप्पावेसाई मंगलाई बत्थाइं पवर-परिहिए, अप्पमहग्धाभरणालंकिय- सरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेण्ट-मल्ल-दामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्स वग्गुरा-परिक्खित्ते पाय-विहारचारेणं वाणियग्गामं नयरं मज्झं मज्झेणं निग्गच्छड़, निग्गच्छित्ता जेणामेव दूइपलासे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ,