Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पालन में उद्यत रहता है। वह महान् कार्य है। इसीलिए उसके व्रत महाव्रत की संज्ञा पा लेते हैं। सीमा
और अपवादों के साथ जहाँ साधक व्रत का पालन करता है, वहाँ उस द्वारा व्रत का पालन-अनुसरण न्यून या छोटा है, उस कारण व्रत के साथ अणु जुड़ जाता है।
__ एक बहुत बड़ी विशेषता जैनधर्म की यह है कि श्रावकों के व्रतों में अपवादों का कोई इत्थंभूत एक रूप नहीं है। एक ही अहिंसाव्रत अनेक आराधकों द्वारा अनेक प्रकार के अपवादों के साथ स्वीकार किया जा सकता हैं । विभिन्न व्यक्तियों की क्षमताएं, सामर्थ्य विविध प्रकार का होता है। उत्साह, आत्मबल, पराक्रम एक जैसा नहीं होता। अनगिनत व्यक्तियों में वह अपने-अपने क्षयोपशम के अनुरूप अनगिनत प्रकार का हो सकता है। अतएव अपवाद स्वीकार करने में व्यक्ति का अपना स्वातन्त्र्य है। उस पर अपवाद बलात् आरोपित नहीं किये जा सकते। इससे कम, अधिक-सभी तरह की शक्ति वाले साधनोत्सुक व्यक्तियों को साधना में आने का अवसर मिल जाता है। फिर धीरे-धीरे साधक अपनी शक्ति को बढ़ाता हुआ आगे बढ़ता जाता है। अपवादों को कम करता जाता है। वैसा करते-करते वह श्रमणोपासक की भूमिका में श्रमणभूत-श्रमणसदृश तक बन सकता है। यह गहरा
वैज्ञानिक तथ्य है। आगे बढना. प्रगति करना जैसा अप्रतिबद्ध आदि निन्द्र मानस से सधता हैं. वैसा प्रतिबद्ध और निगृहीत मानस से नहीं सध सकता। यह अतिशयोक्ति नहीं है कि गृही साधना में जैन धर्म की यह पद्धति निःसन्देह बेजोड़ है। अतिचार-वर्जन आदि द्वारा उसकी मनोवैज्ञानिकता और गहरी हो जाती है, जिससे व्रती जीवन का एक सार्वजनीन पवित्र रूप निखार पाता है। उपासकदशा : प्रेरक विषयवस्तु
. उपासकदशा अंगसूत्रों में एकमात्र ऐसा सूत्र है, जिसमें सम्पूर्णता श्रमणोपासक या श्रावकजीवन की चर्चा है । भगवान् महावीर के समसामयिक आनन्द, कामदेव, चुलनीपिता, सुरादेव, चुल्लशतक, कुंडकौलिक, सकडालपुत्र, महाशतक, नन्दिनीपिता तथा शालिहीपिता-इन दस श्रमणोपासकों के जीवन का इसमें चित्रण है। भगवान् महावीर के ये प्रमुख श्रावक थे। समृद्ध जीवनः ऐहिक भी : पारलौकिक भी
उपासकदशा के पहले अध्ययन में आनन्द नामक श्रावक के उपासनामय जीवन का लेखाजोखा है। विविध प्रसंगों में आये वर्णन से स्पष्ट है कि तब भारत की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी। आनन्द तथा प्रस्तुत सूत्र में वर्णित अन्य श्रावकों के वैभव के जो आँकड़े दिये हैं, वे सहसा कपोलकल्पितसे लगते हैं पर वस्तुस्थिति वैसी नहीं है। वास्तव में विशालभूमि, वृहत् पशुधन, अपेक्षाकृत कम जनसंख्या आदि के कारण 'कुछ एक' वैसे विशिष्ट धनी भी होते थे। धन की मूल्यवता अक्सर स्वर्णमुद्राओं में आंकी जाती थी।
__ऐसा लगता है, उस समय के समृद्धिशाली जनों का मानस उत्तरोत्तर सम्पत्ति बढ़ाते रहने की लालसा में अपनी निश्चिन्तता खोना नहीं चाहता था। ऐसी वृद्धि में उनका विश्वास नहीं था, जो कभी सब कुछ ही विलुप्त कर दे। इसलिए यहाँ वर्णित दसों श्रमणोपासकों के सुरक्षित निधि (Reserve fund) के रूप में उनकी पूंजी का तृतीयांश पृथक् रखा रहता था। घर के परिवार के उपयोग हेतु दैनन्दिन
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