Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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८]
[उपासकदशांगसूत्र नाण-दसणधरेणं वियदृछउमेणं जिणेणं, जाणएणं, बुद्धेणं, बोहएणं, मुत्तेणं, मोयगेणं, तिण्णेणं, तारएणं, सिव-मयल-मरूय-मणंत-मक्खय-मव्वाबाहमपुणरावत्तयं सासयं ठाणमुवगएणं, सिद्धि-गइ-नामधेनं ठाणं) संपत्तेणं।
___ छट्ठस्स अंगस्स नायाधम्मकहाणं अयमढे पण्णत्ते सत्तमस्स णं भंते! अंगस्स उवासगदसाणं समणेणं जाव' संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते?
एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासग दसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता। तं जहा
आणंदे कामदेवे य, गाहावइ-चुलणीपिया। सुरादेवे चुल्लसयए, गाहावइ-कुंडकोलिए। सद्दालपुते महासयए, नंदिणीपिया सालिहीपिया॥
जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते?
उस समय आर्य सुधर्मा [श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी. जाति-सम्पन्न-उत्तम निर्मल मातृपक्षयुक्त, कुल-सम्पन्न-उत्तम निर्मल पितृपक्षयुक्त, बल-सम्पन्न-उत्तम दैहिक शक्तियुक्त, रूपसम्पन्न-रूपवान्-सर्वांग सुन्दर, विनय-सम्पन्न, ज्ञान-सम्पन्न, दर्शन-सम्पन्न, चारित्र-सम्पन्न, लज्जा-सम्पन्न, लाघव-सम्पन्न-हलके-भौतिक पदार्थ और कषाय आदि के भार से रहित, ओजस्वी, तेजस्वी, वचस्वी- . प्रशस्त भाषी अथवा वर्चस्वी-वर्चस् या प्रभाव युक्त, यशस्वी. क्रोधजयी. मानजयी. मायाजयी. लोभजयी. निद्राजयी, इन्द्रियजयी, परिषहजयी-कष्टविजेता, जीवन की इच्छा और मृत्यु के भय से रहित, तपप्रधान, गुण-प्रधान-संयम आदि गुणों की विशेषता से युक्त, करण-प्रधान-आहार-विशुद्धि आदि विशेषता सहित, चारित्र-प्रधान-उत्तम चारित्र-सम्पन्न-दशविध यति-धर्मयुक्त, निग्रह-प्रधान-राग आदि शत्रुओं के निरोधक, निश्चय-प्रधान-सत्य तत्त्व के निश्चित विश्वासी या कर्म-फल की निश्चितता में आश्वस्त, आर्जव-प्रधान-सरलतायुक्त, मार्दव-प्रधान-मृदुतायुक्त, लाघव- प्रधान-आत्मलीनता के कारण किसी भी प्रकार के भार से रहित या स्फूर्ति-शील, शान्ति-प्रधान-क्षमाशील, गुप्ति-प्रधान-मानसिक, वाचिक तथा कायिक प्रवृत्तियों के गोपक--विवेकपूर्वक उनका उपयोग करनेवाले, मुक्ति-प्रधान-कामनाओं से छुटे या मुक्तता की ओर अग्रसर, विद्या-प्रधान-ज्ञान की विविध शाखाओं के पारगामी, मंत्र-प्रधान-सत मंत्र, चिन्तना या विचारणायुक्त, ब्रह्मचर्य-प्रधान, वेद-प्रधान-वेद आदि लौकिक, लोकोत्तर शास्त्रों के ज्ञाता, नय-प्रधान-नैगम आदि नयों के ज्ञाता, नियम-प्रधान--नियमों के पालक, सत्य-प्रधान, शौचप्रधान--आत्मिक शुचिता या पवित्रतायुक्त, ज्ञान-प्रधान--ज्ञान के अनुशीलक, दर्शन-प्रधान--क्षायिक सम्यक्त्वरूप विशेषता से युक्त, चारित्र-प्रधान--चारित्र की परिपालना में निरत, उराल--प्रबल--
१-२-३-४ इसी सूत्र में पूर्व वर्णित के अनुरूप।