Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[उपासकदशांगसूत्र महावीर के समय के पश्चात् भी भारत में सोने के सिक्के चलते रहे। विदेशी शासकों ने भारत में जो सोने का सिक्का चलाया उसे दीनार कहा जाता था। संस्कृत भाषा में 'दीनार' शब्द ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया गया। मुसलमान बादशाहों के शासन-काल में जो सोने का सिक्का चला, वह मोहर या अशरफी कहा जाता था। उसके बाद भारत में सोने के सिक्कों का प्रचलन बन्द हो गया। सामाजिक प्रतिष्ठा
५.से णं आणंदे गाहावई बहूणं राईसर-जाव (तलवर-माडंबिय-कोडंबिय-इब्भसेट्ठि-सेणावइ) सत्थवाहाणं बहुसु कजेसु य कारणेसु य मंतेसु य कुटुंबेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिजे पडिपुच्छणिजे सयस्स वि य णं कुटुंबस्स मेढी, पमाणं, आहारे, आलंबणं, चक्खू, मेढीभूए जाव (पमाणभूए, आहारभूए, आलंबणभूए, चक्खुभुए) सव्व-कज-वड्ढावए यावि होत्था।
आनन्द गाथापति बहुत से राजा--मांडलिक नरपति, ईश्वर--ऐश्वर्यशाली एवं प्रभावशील पुरूष [तलवर--राज-सम्मानित विशिष्ट नागरिक, मांडविक या माडंबिक--जागीरदार भूस्वामी कौटुम्बिक-बड़े परिवारों के प्रमुख, इभ्य--वैभवशाली, श्रेष्ठी--सम्पत्ति और सुव्यवहार से प्रतिष्ठा-प्राप्त सेठ, सेनापति] तथा सार्थवाह--अनेक छोटे व्यापारियों को साथ लिए देशान्तर में व्यवसाय करने वाले समर्थ व्यापारी-इन सबके अनेक कार्यों में, कारणों में, मंत्रणाओं में, पारिवारिक समस्याओं में, गोपनीय बातों में, एकान्त में विचारणीय--सार्वजनिक रूप में अप्रकटनीय विषयों में, किए गए निर्णयों में तथा परस्पर के व्यवहारों में पूछने योग्य एवं सलाह लेने योग्य व्यक्ति था। वह सारे परिवार का मेढिमुख्यकेन्द्र, प्रमाण--स्थिति स्थापक--प्रतीक, आधार, आलंबन, चक्षु--मार्ग-दर्शक, मेढिभूत [प्रमाणभूत, आधारभूत, आलंबनभूत चक्षुभूत] तथा सर्व-कार्य-वर्धापक-सब प्रकार के कार्यों को आगे बढ़ाने वाला था। विवेचन
यहां प्रयुक्त 'तलवर' आदि शब्द उस समय के विशिष्ट जनों के रूप को प्रकट करते हैं ।यह विशेषता विभिन क्षेत्रों से सम्बन्धित थी। आर्थिक, व्यापारिक, शासनिक, व्यावहारिक तथा लोकसंपर्कपरक उन सभी विशेषताओं का संकेत इन शब्दों में प्राप्त होता है, जिनका उस समय के समाज में महत्व और आदर था। आनन्द के व्यापक, प्रभावशाली और आदरणीय व्यक्तित्व का इस प्रसंग से स्पष्ट परिचय प्राप्त होता है। वह इतना उदार, गंभीर और ऊंचे विचारों का व्यक्ति था कि सभी प्रकार के विशिष्ट जन अपने कार्यों में उसे पूछना, उससे सलाह लेना उपयागी मानते थे।
इस प्रसंग में एक दूसरी महत्त्व की बात यह है, जो आनन्द के पारिवारिक जीवन की एकता, पारस्परिक निष्ठा और मेल पर प्रकाश डालती है । आनन्द सारे परिवार का केन्द्र-बिन्दु था तथा परिवार के विकास और संवर्धन में तत्पर रहता था। आनन्द के लिए मेढि की उपमा यहां काफी महत्त्वपूर्ण है।