Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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'सूर्यवंशी राजा बचपन में विद्याध्ययन करते थे, यौवन में सांसारिक सुख भोगते थे, वृद्धावस्था में मुनिवृत्ति-मोक्षमार्ग का अवलम्बन करते थे और अन्त में योग या समाधिपूर्वक देहत्याग करते थे।
विवेक का तकाजा है, व्यक्ति एक पशु या साधारण जन की मौत क्यों मरे। उसे योग या समाधिपूर्वक मरना चाहिए। वह पशु नही हँ, मननशील मानव है । इन दसों उपासकों ने ऐसा ही किया। इन दसों की मृत्यु-समाधियम मृत्यु पवित्र और उत्तम मृत्यु थी। वहाँ मरण शोक नही, महोत्सव बन जाता है। समाधिपूर्वक देह-त्याग निश्चित ही मरण-महोत्सव है। पर, इसके अधिकारी आत्मबली पुरूष ही होते है, जिनका जीवन विभाव से स्वभाव की ओर मुड़ जाता है। सामाजिक स्थिति
दसों श्रमणोपासकों के पास गोधनों का प्राचुर्य था। इससे प्रकट है कि गोपालन का उन दिनों भारत में काफी प्रचलन था। इतनी गाये रखने वाले के पास कृषिभूमि भी उसी अनुपात में होनी चाहिए। आनन्द की कृषिभूमि ५०० हल परिमाण बतलाई गई है। गाय दूध, दही तथा घृत के उपयोग का पशु तो था ही, उसके बछडे बैलों के रूप में खेती के, सामान ढोने के तथा रथ आदि सवारियों के वाहन खींचने के उपयोग में आते थे। उस समय के जन-जीवन में वास्तव में गाय और बैल का बड़ा महत्त्व था।
उन दिनों लोगों का जीवन बड़ा व्यवस्थित था। हर कार्य का अपना विधिक्रम और व्यवस्थाक्रम था। भगवान् महावीर के दर्शन हेतु शिवनन्दा अदि के जाने का जब प्रसंग आता है, वहाँ धार्मिक उत्तम यान का उल्लेख है, जो बैलों द्वारा खींचा जाता था। वह एक विशेष रथ था, जिसकी धार्मिक कार्यों हेतु जाने में सवारी के लिए उपयोग होता था।
आनन्द ने श्रावक-व्रत ग्रहण करते समय खाद्य, पेय परिधेय, भोग, उपभोग आदि का जो परिमाण किया, उससे उस समय के रहन-सहन पर काफी प्रकाश पड़ता है। अभ्यंगन-विधि के परिमाण में शतपाक एवं सहस्त्रपाक तैलों का उल्लेख है। इससे यह प्रकट होता है कि तब आयर्वेद काफी विकसित था। औषधियों से बहुत प्रकार के गुणकारी, बहुमूल्य तैल तैयार किये जाते थे।
__खानपान, रहन-सहन आदि बहुत परिमार्जित थे। आनन्द दतौन के लिए हरी मुलैठी का परिमाण करता है; मस्तक, केश आदि धोने के लिए दूधिया आंवले का और उबटनों में गेहूं आदि के आटे के साथ सुगन्धित पदार्थ मिलाकर तैयार की गई पीठी का परिमाण करता है। विशिष्टि लोग देह पर चन्दन, कुंकम आदि का लेप भी करते थे।
लोगों में आभूषण धारण करने की भी रूचि थी। बड़े लोग संख्या में कम पर बहुमूल्य आभूषण पहनते थे। पुरूषों में अंगूठी पहनने का विशेष रिवाज था। आनन्द ने अपनी नामांकित अंगूठी के रूप में आभूषण-परिमाण किया था। रथ में जुतने वाले बैलों को भी बड़े लोग सोने, चांदी के गहने १. शैशवेऽभ्यस्तविद्यानां यौवने विषयैषिणाम् । वार्धक्ये मुनिवृत्तीनां योगेनान्ते तनुत्यजान् ॥
--रघुवंश सर्ग १
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