Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय उद्देशक / गाथा 60 से 63 तइओ उद्देसओ तृतीय उद्देशक आधाकर्म दोष 60. जं किंचि वि पूतिकडं सड्डीमागंतुमीहियं / _सहस्संतरियं भुजे दुपक्खं चेव सेवती // 1 // 61. तमेव अविजाणंता विसमंमि अकोविया। __मच्छा वेसालिया चेव उदगस्सऽभियागमे // 2 // 62. उदगस्सऽप्पभावेणं सुक्कमि घातमिति उ / ढंकेहि व कंकेहि य आमिसत्थेहि ते दुही // 3 // 63. एवं तु समणा एगे वट्टमाणसुहेसिणो। मच्छा वेसालिया चेव घातमेसंतऽणंतसो // 4 // 60. जो आहार आधाकर्मी आहार के एक कण से भी दूषित, मिश्रित या अपवित्र है, और श्रद्धालु गृहस्थ के द्वारा आगन्तुक मुनियों, श्रमणों के लिए बनाया गया है, उस (दोषयुक्त) आहार को जो साधक हजार घर का अन्तर होने पर भी खाता है वह साधक (गृहस्थ और साधु) दोनों पक्षों का सेवन करता है। 61. उस (आधाकर्म आदि आहारगत दोष) को नहीं जानते हुए तथा (अष्टविध कर्म के या संसार के) ज्ञान में अनिपुण वे (आधाकर्मादि दोषयुक्त आहारसेवी साधक) उसी प्रकार दुःखी होते हैं, जैसे वैशालिक जाति के मत्स्य जल की बाढ़ आने पर। 62. बाढ़ के जल के प्रभाव से सूखे और गीले स्थान में पहुँचे हुए वैशालिक मत्स्य जैसे मांसार्थी ढंक और कक पक्षियों द्वारा सताये जाते हैं। 63. इसी प्रकार वर्तमान सुख के अभिलाषी कई श्रमण वैशालिक मत्स्य के समान अनन्त बार (विनाश) को प्राप्त होंगे। विवेचन-दूषित आहार-सेवी साधकों को दशा-गाथा 60 से 63 तक में शास्त्रकार ने स्व-समय (निर्ग्रन्थ श्रमणाचार) के सन्दर्भ में आधाकर्म आदि दोष से दूषित आहार-सेवन से हानि एवं दोषयुक्त आहार-सेवी की दुर्दशा का निरूपण किया है। छान्दोग्य उपनिषद में भी बताया है कि आहार-शुद्धि से सत्त्वशुद्धि होती है, सत्त्वशुद्धि से स्मृति स्थायी होती है, स्थायी स्मृति प्राप्त होने पर समस्त ग्रन्थियों का विशेष प्रकार से मोक्ष हो जाता है।' 1 आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः, सत्त्वशुद्धौ ध्र वा स्मृतिः / स्मतिलम्भे सर्व ग्रन्थीनां विप्रमोक्षः।' -छान्दोग्योपनिषद् अ० 7, खण्ड 26/2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org