Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ आर्द्रकीय : छठा अध्ययन प्राथमिक .] सूत्रकृतांग (द्वि. श्रु.) के छठे अध्ययन का नाम 'आर्द्र कीय' है। 0 आर्द्र क (भूतपूर्व राजकुमार और वर्तमान में श्रमण भगवान् महावीर की परम्परा में स्वयं दीक्षित मुनि) से सम्बन्धित होने के कारण इस अध्ययन का नाम आर्द्रकीय रखा गया / नियुक्तिकार के अनुसार आद्रकपुर नगर में, आर्द्र कनामक राजा का पुत्र तथा प्रार्द्र कवती रानी का अंगजात 'पार्द्र ककुमार' बाद में आर्द्र क अनगार हो गया था। पाक से समुत्थित होने से इस अध्ययन का नाम 'पार्द्र कीय' है / प्रार्द्र ककुमार ने आर्द्र कपुर' नामक अनार्यदेशवर्ती नगर में जन्म लेकर मुनिदीक्षा कैसे ली ? और भगवान् महावीर के धर्म का गाढ़ परिचय उसे कैसे हुआ ? नियुक्तिकार के अनुसार वह वृत्तान्त संक्षेप में इस प्रकार है--आर्द्र कपुर नरेश और मगधनरेश श्रेणिक के बीच स्नेहसम्बन्ध था। इसी कारण अभयकुमार से प्रार्द्र ककुमार का परोक्ष परिचय हुआ। आर्द्र ककुमार को अभयकुमार ने भव्य और शीघ्रमोक्षगामी समझकर उसके लिए प्रात्मसाधनोपयोगी उपकरण उपहार में भेजे। उन्हें देखते ही उसे पूर्वजन्म का स्मरण हुअा। प्रार्द्र ककुमार का मन काम-भोगों से विरक्त हो गया / अपने देश से निकलकर भारत पहुँचा। दिव्यवाणी द्वारा मना किये जाने पर भी स्वयं पाहतधर्म में प्रवजित हो गया। भोगावलीकर्मोदयवश दीक्षा छोड़कर पुनः गृहस्थधर्म में प्रविष्ट होना पड़ा। अवधि पूर्ण होते ही पुनः साधुवेश धारण कर जहाँ भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ पहुँचने के लिए प्रस्थान किया। पूर्वजन्म का स्मरण होने से आर्द्र क को निर्ग्रन्थ महावीर एवं उनके धर्म का बोध हो गया था। मार्ग में प्राकमुनि की चर्चा किन-किन के साथ, क्या-क्या हुई ? यह इस अध्ययन के 'पुराकडं अद्द ! इमं सुणेह' 'पाठ से प्रारम्भ होने वाले वाक्य से परिलक्षित होती है। इस वाक्य में उल्लिखित 'अह' सम्बोधन से भी स्पष्ट प्रतीत होता है कि इस अध्ययन में चचित वादविवाद का सम्बन्ध 'आर्द्रक' के साथ है। नियुक्ति एवं वृत्ति के अनुसार इस अध्ययन में आक के साथ पांच मतवादियों के वादविवाद का वर्णन है--(१) गोशालक, (2) बौद्धभिक्षु, (3) वेदवादी ब्राह्मण, (4) सांख्यमतवादी एकदण्डी, और (5) हस्तितापस / आर्द्रकमुनि ने सबको युक्ति, प्रमाण एवं निर्ग्रन्थ सिद्धान्त के अनुसार उत्तर दिया है, जो बहुत ही रोचक शैली में प्रस्तुत किया गया है। / यह अध्ययन सू. गा. 787 से प्रारम्भ होकर सू. गा. 841 पर समाप्त होता है / 1. कुछ विद्वान् पार्द्रकपुर वतमान 'एडन' को बताते हैं।-सं. 2, (क) सूत्रकृतांग शीलांक वत्ति पत्रांक 385 से 388. (ख) सूत्रकृतांग नियुक्ति गा. 187, 190, 198, 199 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org