Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 834
________________ वेर 252 ] [ सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध विभंगे 664,710-713,715,717 वेत्तण 704 वियक्का (वितर्क) 805 वेदणा 674, 713 वियत्त (व्यक्त) 636, 640, 641, 643 वेमाया (विमात्रा) 707 वियंजियं (व्यजित) 661 वेयणा 771 वियंतिकारए (व्यन्तकारक) वेयणं 664 विरताविरति 716 वेयवानो (वेदवाद) 829 विरति 716, 762 वेरबहुले विरसाहारा 666,782 विरालियाणं (विरालिका) 736 वेरायतणाई 713 विरुद्ध 710 वेरूलिए (वैडूर्य) 746 विरूवरूव 651, 708,710 / वेस (वैश्ये) 834 विलेवण 713 वेसियं (वैशिक) 688 विवज्जगस्स 761 वंचण 713 विवेगं 665 वंजणं 708 विवेयकम्मे 678 सपट विसण्ण 636, 640, 743 सउणी (णि) (शकुनि) विसमं सकामकिच्चेण 803 विसल्लकरणि (विशल्यकरणी) सकारणं 664 विसंधी 675 सकिरिए 747, 746, 755 विस्संभ राण 736 सक्करा (शर्करा) 742 विग 714 सगड (शकट) 713 विहाण 665 सचित्त 685, 737, 739, 743, 744, विहारेणं 714,854, 755 745 विहिंसक्काई 753 सच्चं 854 विहुणे 806 सच्चामोसाई 706, 861 वीरासणिया 714 सछत्ताए 728 वीसा 713 सज्झत्ताए 728 वीहासेणिया 714 सड्ढी (द्धिन्) 647, 654, 656 वीहि (ब्रीहि) 668 सणप्फयाणं (सनखपद) 734 वीहिरूसितं सणातणं वुड्ढ 733, 734, 735 सण्णा 674, 751 बत्तपूव्वं 846, 853, 856, 857, 865 सण्णिकायापो 752 वसिम (वृषिमत्) 800 सण्णिकाय 752 वेगच्छ (च्छि) प्रणयं 713 सणिणो वेण इवादीणं 717 सण्णिदिठं 751 वेतालि 708 सण्णिधिसंणिचए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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