Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text ________________ nur wwwwww द्वितीय परिशिष्ट : विशिष्ट शब्दसूची ] [ 251 वज्झा 783 वाउसरीरं 723 वट्टग (वर्तक) 668, 710, 713 वाऊ वट्टगलक्खण 708 वागुरियभावं (वागुरिकभाव) वणलेवणभूयं 688 वातपरिगतं वणविदुग्गसि (वनविदुर्ग) 666, 698 वातसंगहितं वणसंड (वनषण्ड) वातसंसिद्ध 736 वणस्सइ (ति) सरीरं 723 वाय (वात) 818, 816, 825 वणस्सतिकाइया 751 वायत्ताए वणस्सतिकायं 733-737 वायसपरिमंडलं वणिया (वणिक) 807-808 वायाभियोगेण वष्ण 675, 714 वण्णमंत 638 वालाए वतीए 748, 746 वालुग वत्तियहेउं (वृत्तिकहेतु प्रत्ययहेतु) 666 वालयत्ताए 745 वत्थ 652, 688, 663, 708, 710 वास 713, 801, 838,853, 854 वत्थकाले 688,710 वासाणियत्ताए 728 वत्थपडिग्गहकंबलपायपुछणेणं 715 वाहण वत्थ 668 विगत्तगा (विकर्तक) वधाए 668 विगुणोदयंमि 713 वब्भवत्तियं 713 विचित्तमालामउलिमउडा 714 वमण 681 विचित्तहत्थाभरणा 714 वम्मिए 660 विच्छड्डित (य) पउरभत्तपाणे 646, 843 वयणिज्जे 663 विज्जायो वयणं विणिच्छियट्ठा (विनिश्चितार्थ) 715 वयं 838 विण्णाएण 682 वराह 713 विण्णु (विज्ञ) 674, 664 वसणुप्पाडिययं 713 विततपक्खीणं 736-737 वलयंसि 666 वित्ति (वृत्ति) 713, 745, 838 वलितरंगे 605 वित्ते (वित्तवान्) 646, 843 ववगयदुभिक्खमारिभयविप्पमुक्कं 646 वित्तेसिणो वसलगा (वृषलक) 710 विदू (विद्वस्) वसवत्ती 682 विद्ध 812, 813 बसाए 666, 714 विपरामुसह वहबंधणं 713 विपरियणं 723 वाउकायं 735 विपुलं वाउक्कायत्ताए 744 विपरियास (विपर्यास) WWWAKRc 708 816 713 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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