Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ नालन्दकीय : सप्तम अध्ययन : सूत्र 873] [217 (4) उदक निर्ग्रन्थ का हृदयपरिवर्तन, तदनुसार उनके द्वारा चातुर्यामधर्म का विसर्जन करके सप्रतिक्रमणपंचमहाव्रतरूप धर्म स्वीकार करने की इच्छा प्रदर्शित करना। (5) उदक की इस भव्य इच्छा की पूर्ति के लिए श्री गौतमस्वामी द्वारा उन्हें अपने साथ लेकर भगवान महावीर स्वामी के निकट जाना। (6) भगवान् महावीर के समक्ष वन्दन-नमस्कार आदि करके उदक द्वारा सप्रतिक्रमण पंचमहावतरूप धर्म स्वीकार करने की अभिलाषा व्यक्त करना / (7) भगवान् द्वारा स्वीकृति / (8) उदक द्वारा पंचमहाव्रतरूप धर्म का अंगीकार और भगवान महावीर के शासन में विचरण / ' गौतम स्वामी द्वारा उदक निर्ग्रन्थ को कृतज्ञताप्रकाश के लिए प्रेरित करने का कारण चूणिकार के शब्दों में इस प्रकार है-इस प्रकार भगवान के द्वारा बहुत-से हेतुओं द्वारा उदक अनगार निरुत्तर कर दिया गया था, तब अन्तर से तो जैसा इन्होंने कहा, वैसा ही (सत्य) है' इस प्रकार स्वीकार करते हुए भी वह बाहर से किसी प्रकार की कायिक या वाचिक चेष्टा से यह प्रकट नहीं कर रहे थे, 'आपने जैसा कहा, वैसा ही (सत्य) है, बल्कि इससे विरक्त होकर दुविधा में पड़ गये थे। तब भगवान् गौतम ने उन्हें (कृतज्ञताप्रकाश के लिए) ऐसे (मूलपाठ में उक्त) उद्गार कहे / '2 // नालन्दकीय : सप्तम अध्ययन समाप्त / / / सूत्रकृतांग-द्वितीयश्रुतस्कन्ध सम्पूर्ण // // सूत्रकृतांग सम्पूर्ण // 1. सूत्रकृतांम शीलांकवत्ति पत्रांक 424 से 427 तक का सारांश / 2. एवं सो उदयो “निरुत्तो कतो, "बाहिर चे ण पउंजत्ति .. वीरत्तण दोण्हिक्को अच्छति गौतमे उदगं एवं वदासि / " --सूत्रकृ. चू. (मू. पा. टि.) पृ. 254 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org