Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 198 सूत्रकृतांग-तृतीय अध्ययन-उपसर्गपरिजा दीनता-हीनता, ग्लानि एवं मिथ्या गौरव भावना नहीं लाते, वे स्वाभिमान पूर्वक निर्दोष भिक्षा प्राप्त होने पर ही लेते हैं, गृहस्थदाता द्वारा इन्कार करने पर या, रसहीन रूक्ष, तुच्छ एवं अल्प आहारादि देने पर भी वह विषण्ण नहीं होते यही इस गाथा के पूर्वार्द्ध का फलिताशय है / आक्रोश परीषह के रूप में उपसर्ग : किनके लिए सह-असह्य ? इसी गाथा के उत्तरार्द्ध में बतलाया गया है कि आक्रोशपरीषह रूप उपसर्ग किस रूप में आता है-साधुओं को ग्राम या नगर में प्रवेश करते या भिक्षा विहार आदि करते देखकर कई अनाड़ी लोग उन पर तानाकशी करते हैं "अरे ! देखो तो, इनके कपड़े कितने गंदे एवं मैले हैं। शरीर भी गंदा है, इनके शरीर और मुह से बदबू आती हैं, इनके सिर मुडे हुए हैं, ये बेचारे भूखे-प्यासे अधनंगे एवं भिखमंगे साधु अपने पूर्वकृत अशुभकर्मों (के फल) से पीड़ित हैं, अथवा ये अपने पूर्वकृत पापकर्मों का फल भोग रहे हैं। अथवा ये लोग घर में खेती, पशुपालन आदि काम धंधा नहीं कर सकते थे, या उन कामों के बोझ से दुःखी एवं उद्विग्न (आर्त) थे, इनसे कामधाम होता नहीं था, निकम्मे और आलसी थे, घर में इन्हें कोई पूछता नहीं था सभी पदार्थों से तंग थे, इसलिए साधु बन गए हैं / ये लोग अभागे हैं, स्त्रीपुत्रादि सभी लोगों ने इन्हें निकाल (छोड़) दिया है, जहाँ जाते हैं वहाँ इनका दुर्भाग्य साथ-साथ रहता है / इसी बात को शास्त्रकार कहते हैं-'कम्मत्ता दुब्भगाजणा' अर्थात्-अज्ञानीजन इस प्रकार के आक्रोशमय (ताने भरे) शब्द उन्हें कहते हैं। ___ जो नाजुक, तुच्छ, उपसर्ग सहन में अनभ्यस्त अल्पसत्त्व (मंद) साधक होते हैं, वे अज्ञानीजनों के इन तानों तथा व्यंग्य वचनों को सुनकर एकदम क्षुब्ध हो जाते हैं। ऐसे आक्षप, निन्दा, तिरस्कार एवं व्यंग से युक्त तथा कलेजे में तीर से चुभने वाले कटु वचनों को सुनते ही उनके मन में दो प्रकार की प्रतिक्रिया होती है-(१) आक्रोश- शब्दों को सुनकर उन्हें सहने में असमर्थ होने से मन ही मन कुढ़ते या खिन्न होते रहते हैं, या (2) वे क्रुद्ध होकर वाद-विवाद आदि पर उतर आते हैं। उस समय उन कायर एवं अपरिपक्व साधकों की मन:स्थिति इतनी दयनीय एवं भयाक्रान्त हो जाती है, जैसी कायर और भगौड़े सैनिकों की युद्ध क्षेत्र में पहुँचने पर या युद्ध में जब तलवारें चमकती हैं, शस्त्रास्त्र उछलने लगते हैं, तब होती है / यही बात शास्त्रकार कहते हैं-एते सद्दे अचायंता भीरुणो / ' आक्रोश-उपसर्ग विषयक इस गाथा में से यह आशय फलित होता है कि महावती साधक उपसर्ग सहिष्णु बनकर ऐसे आक्रोशमय वचनों को समभाव से सहन करे। कठिन शब्दों की व्याख्या--दुप्पणोल्लिया-दुस्त्याज्य या दुःसह / कम्मत्ता दुग्भगा चेव=वृत्तिकार के अनुसार कर्मों से अति-पीड़ित हैं, पूर्व-स्वकृत कर्मों का फल भोग रहे हैं, अथवा कृषि आदि कर्मों (अजीविका कार्यों) से आत-पीड़ित हैं, उन्हें करने में असमर्थ एवं उद्विग्न हैं, और दुर्भाग्य युक्त हैं।' 8 सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक 80 के आधार पर 6 (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक 80 में देखिए (अ) कर्मभिरार्ताः, पूर्वस्वकृतकर्मणः फलमनुभव न्ति, यदि वा कर्मभिः कृष्यादिभिः आर्ताः, तत्कर्तुमसमर्था उद्विग्नाः सन्तः।" (ब) दुर्भगाः-सर्वेणव पुत्रदारादिना परित्यक्ता निर्म तिकाः सन्तः प्रव्रज्यामभ्युपगताः / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org