Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 702 703 109 __ अष्टम क्रियास्थान : अध्यात्मप्रत्ययिक नौवाँ क्रियास्थान : मान प्रत्ययिक दसवां क्रियास्थान : मित्र दोष प्रत्यायिक 705 ग्यारहवां क्रियास्थान : माया प्रत्यायिक बारहवां क्रियास्थान : लोक प्रत्यायिक 707 तेरहवाँ क्रियास्थान : ऐर्यापथिक, अधिकारी स्वरूप, प्रक्रिया एवं सेवन 708-10 अधर्मपक्षनामक प्रथम स्थान के विकल्प : चर्या अधिकारी : स्वरूप 711 धर्मपक्ष नामक द्वितीय स्थान के विकल्प 712-16 तृतीय स्थान : मिश्र पक्ष का अधिकारी एवं स्वरूप 717-20 दोनों स्थानों में सबका समावेश : क्यों, कैसे और पहचान 721 तेरह ही क्रियास्थानों का प्रतिफल ___ अाहारपरिज्ञा : तृतीय अध्ययन : पृष्ठ 106 से 131 प्राथमिक 722.31 अनेकविध वनस्पतिकायिक जीवों की उत्पत्ति, स्थिति, संवद्धि एवं आहार की प्रक्रिया 732 नानाविध मनुष्यों की उत्पत्ति, स्थिति, संवृद्धि एवं आहार की प्रक्रिया [देव-नारकों का ग्राहार, स्त्री-पुरुष एवं नपुंसक की उत्पत्ति का रहस्य | पंचेन्द्रिय तिर्यकचों की उत्पत्ति, स्थिति, संवृद्धि एवं ग्राहार की प्रक्रिया 738 विकलेन्द्रिय बम प्राणियों की उत्पत्ति, स्थिति, मंद्धि और आहार की प्रक्रिया 739 अप्काय, अग्निकाय, वायुकाय और पृथ्वीकाय के अाहारादि का निरूपण 740-46 समुच्चय रूप से सब जीवों की पाहारादि प्रक्रिया और आहार-संयम-प्रेरणा प्रत्याख्यान क्रिया : चतुर्थ अध्ययन : पृष्ठ 132 से 145 प्राथमिक अप्रत्याख्यानी प्रात्मा का स्वरूप और प्रकार 748-49 प्रत्याख्यान क्रिया रहित सदैव पापकर्म बन्धकर्ता : क्यों और कैसे 750-52 संज्ञी-असंज्ञी-अप्रत्याख्यानीः सदैव पाप कर्मरत समाधान : दो दृष्टान्तों द्वारा] 753 संयत, विरत पापकर्म प्रत्याख्यानी : कौन और कैसे 106-107 108 118 121 124 126 130 132 13 // 136 अनाचारश्रुत : पंचम अध्ययन : पृष्ठ 146 से 163 प्राथमिक 146 अनाचरणीय का निषेध 147 755-64 अनाचार के निषेधात्मक विवेकसूत्र 148 765.81 नास्तिकता और आस्तिकता के आधारभूत संज्ञाप्रधान : सूत्र 152 लोक-अलोक, जीव-ग्रजीव, धर्म-अधर्म, वन्ध और मोक्ष, पुण्य और पाप, पाश्रव-संबर, वेदना और निर्जरा, किया और प्रक्रिया, क्रोध, मान, माया और लोभ, राग और द्वेष, देव और देवी, सिद्धि और प्रसिद्धि, साधु और असाधु [15] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org