Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ क्रियास्थान : द्वितीय अध्ययन सूत्र 721 ] [ 105 संसार के तथा तेरहवें क्रियास्थान को मोक्ष का कारण बताने का आशय है-१२ क्रियास्थान तो मुमुक्षु के लिए त्याज्य और तेरहवा ग्राह्य समझा जाए / परन्तु सिद्धान्तानुसार तेरहवाँ क्रियास्थान ग्राह्य अन्त में होने पर भी एवंभूत आदि शुद्ध नयों की अपेक्षा से त्याज्य है। तेरहवें क्रियास्थान में स्थित जीव को सिद्धि, मुक्ति या निर्वाण पाने की बात औपचारिक है। वास्तव में देखा जाए तो, जब तक योग रहते हैं, (13 वें गुणस्थान तक) तब तक भले ही ईर्यापथ क्रिया हो, जीव को मोक्ष, मुक्ति, निर्वाण या सिद्धि नहीं मिल सकती / इसलिए, यहाँ 13 वें क्रियास्थान वाले को मोक्ष या मुक्ति की प्राप्ति होती है, इस कथन के पीछे शास्त्रकार का तात्पर्य यह कि 13 वाँ क्रियास्थान प्राप्त होने पर जीव को मोक्ष, मुक्ति या निर्वाण आदि अवश्यमेव प्राप्त हो जाता है। मोक्षप्राप्ति में 13 वाँ क्रियास्थान उपकारक है। जिन्होंने 12 क्रियास्थानों को छोड़कर 13 वें क्रियास्थान का आश्रय ले लिया, वे एक दिन अवश्य ही सिद्ध, बुद्ध, मुक्त यावत् सर्वदुःखान्तकृत् बने हैं, बनते हैं, और बनेंगे, किन्तु 12 क्रिया स्थानों का आश्रय लेने वाले कदापि सिद्ध, बुद्ध, मुक्त नहीं हुए, न होते, न होंगे।' // क्रियास्थानः द्वितीय अध्ययन समाप्त // 1. सूत्रकृतांग शीलांकवृत्ति, पत्रांक 341 का निष्कर्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org