Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 154 ] [ सूत्रकृतांगसूत्र--द्वितीय श्रुतस्कन्ध ७७४-माया और लोभ नहीं हैं, इस प्रकार की मान्यता नहीं रखनी चाहिए, किन्तु माया है और लोभ भी है, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए। ७७५–णत्थि पेज्जे व दोसे वा, णेवं सणं निवेसए। अस्थि पेज्जे व दोसे वा, एवं सणं निवेसए // 22 // ७७५---राग और द्वेष नहीं है, ऐसी विचारणा नहीं रखनी चाहिए, किन्तु राग और द्वष हैं, ऐसी विचारणा रखनी चाहिए। ७७६--णत्थि चाउरते संसारे, णेवं सणं निवेसए / अस्थि चाउरते संसारे, एवं सणं निवेसए // 23 // ७७६-~चार गति वाला संसार नहीं है, ऐसी श्रद्धा नहीं रखनी चाहिए, अपितु चातुर्गतिक संसार (प्रत्यक्षसिद्ध) है, ऐसी श्रद्धा रखनी चाहिए / ७७७–णथि देवो व देवी वा, णेवं साणं निवेसए / अस्थि देवो व देवी वा, एवं सण्णं निवेसए // 24 // ७७७-देवी और देव नहीं हैं, ऐसी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, अपितु देव-देवी हैं, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए। ७७५-नस्थि सिद्धी प्रसिद्धी वा, णेवं सण्णं निवेसए / अस्थि सिद्धी प्रसिद्धी वा, एवं सणं निवेसए // 25 // ७७८-सिद्धि (मुक्ति) या प्रसिद्धि (अमुक्तिरूप संसार) नहीं है, ऐसी बुद्धि नहीं रखनी चाहिए, अपितु सिद्धि भी है और प्रसिद्धि (संसार) भी है, ऐसी बुद्धि रखनी चाहिए। 776-- नत्थि सिद्धी नियं ठाणं, णेवं सण्णं निवेसए / अस्थि सिद्धी नियं ठाणं, एवं सणं निवेसए // 26 // ७७६-सिद्धि (मुक्ति) जीव का निज स्थान (सिद्धशिला) नहीं है, ऐसी खोटी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, प्रत्युत सिद्धि जीव का निजस्थान है, ऐसा सिद्धान्त मानना चाहिए / ७८०-नस्थि साहू असाहू वा, णेवं सण्णं निवेसए / अस्थि साहू असाहू वा, एवं सणं निवेसए // 27 // ७८०-(संसार में कोई) साधु नहीं है और असाधु नहीं है, ऐसी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, प्रत्युत साधु और असाधु दोनों हैं, ऐसी श्रद्धा रखनी चाहिए। ७८१–नस्थि कल्लाणे पावे वा, वं सणं निवेसए / अस्थि कल्लाणे पावे वा, एवं सणं निवेसए // 28 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org