Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 74 ] [ सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीय श्रु तस्कन्ध से एगतियों उवचरगभावं पडिसंधाय तमेव उवचरित 2 हंता छेत्ता मेत्ता लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता प्राहारं प्राहारेति, इति से महया पावेहिं कम्मेहि अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति / __ से एगतियो पाडिपहियभावं पडिसंधाय तमेव पडिपहे ठिच्चा हंता छेत्ता भेत्ता लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता प्राहारं पाराहेति, इति से महया पावेहि कम्मेहि अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति 3 / से एगतिमओ संधिच्छेदगभावं पडिसंधाय तमेव संधि छेत्ता भेत्ता जाव इति से महता पावेहि कम्मेहि प्रत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति 4 / से एगतियों गंठिच्छेदगभावं पडिसंधाय तमेव गाँठ छेत्ता भेत्ता जाव इति से महया पावेहि कम्मेहि अप्पाणं उवक्खाइत्ता भवति 5 / से एगतिलो उरम्भियभावं पडिसंधाय उरभं वा अण्णतरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति 6 / एसो अभिलावो सव्वस्थ / __ से एगतिलो सोयरियभावं पडिसंधाय महिसं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति / से एगतिमो वागुरियभावं पडिसंधाय मिगं वा अण्णतरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति / से एगतिम्रो साउणियभावं पडिसंधाय सउणि वा अण्णतरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति / से एगतिनो मच्छियभावं पडिसंधाय मच्छं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति 10 / से एगतिमो गोघातगभावं पडिसंधाय गोणं वा अण्णतरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति 11 // से एगतिलो गोपालगभावं पडिसंधाय तमेव गोणं वा परिजविय परिजविय हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति 12 / से एगतिलो सोवणियभावं पडिसंधाय सुणगं वा अन्नयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवति 13 // ___ से एगतिलो सोवणियंतियभावं पडिसंधाय मणुस्सं वा अन्नयर वा तसं पाणं हंता जाव आहारं आहारेति, इति से महता पावेहि कम्मेहि अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति 14 / ७०६-कोई पापी मनुष्य अपने लिए अथवा अपने ज्ञातिजनों के लिए अथवा कोई अपना घर बनाने के लिए या अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए अथवा अपने नायक या परिचित जन तथा सहवासी या पड़ौसी के लिए निम्नोक्त पापकर्म का आचरण करने वाले बनते हैं-(१) अनुगामिक (धनादि हरण के लिए किसी व्यक्ति के पीछे लग जानेवाला) बनकर, अथवा (2) उपचरक (पाप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org