Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ पौण्डरीक : प्रथम अध्ययन : सूत्र 660 ] [6] से जहाणामए उदगपोक्खले सिया उदगजाए जाव उदगमेव अभिभूय चिट्ठति / एवामेव धम्मा वि जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति / [7] स जहाणामए उदगबुब्बुए सिया उदगजाए जाव उदगमेव अभिभूय चिट्ठति / एवामेव धम्मा वि पुरिसाईया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति / ६६०-इस जगत् में जितने भी चेतन--अचेतन धर्म (स्वभाव या पदार्थ) हैं, वे सब पुरुषादिक हैं-ईश्वर या आत्मा (उनका) आदि कारण है; वे सब पुरुषोत्तरिक हैं—ईश्वर या आत्मा ही सब पदार्थों का कार्य है, अथवा ईश्वर ही उनका संहारकर्ता है, सभी पदार्थ ईश्वर द्वारा प्रणीत (रचित) हैं, ईश्वर से ही उत्पन्न (जन्मे हुए) हैं, सभी पदार्थ ईश्वर द्वारा प्रकाशित हैं, सभी पदार्थ ईश्वर के अनुगामी हैं, ईश्वर का आधार लेकर टिके हुए हैं। (1) जैसे किसी प्राणी के शरीर में हुमा फोड़ा (गुमड़ा) शरीर से ही उत्पन्न होता है शरीर में ही बढ़ता है, शरीर का ही अनुगामी बनता है और शरीर का ही प्राधार लेकर टिकता है, इसी तरह सभी धर्म (पदार्थ) ईश्वर से ही उत्पन्न होते हैं, ईश्वर से ही वृद्धिगत होते हैं, ईश्वर के ही अनुगामी हैं, ईश्वर का आधार लेकर ही स्थित रहते हैं। (2) जैसे अरति (मन का उद्वेग) शरीर से ही उत्पन्न होती है, शरीर में ही बढ़ती है, शरीर की अनुगामिनी बनती है, और शरीर को ही मुख्य आधार बना करके पीड़ित करती हुई रहती है, इसी तरह समस्त पदार्थ ईश्वर से ही उत्पन्न, उसी से वृद्धिंगत और उसी के आश्रय से स्थित हैं। (3) जैसे बल्मीक (कीटविशेषकृत मिट्टी का स्तूप या दीमकों के रहने की बांबी) पृथ्वी से उत्पन्न होता है, पृथ्वी में ही बढ़ता है, और पृथ्वी का ही अनुगामी है तथा पृथ्वी का ही आश्रय लेकर रहता है, वैसे ही समस्त पदार्थ (धर्म) भी ईश्वर से हो उत्पन्न हो कर उसी में लीन होकर रहते हैं / (4) जैसे कोई वृक्ष मिट्टी से ही उत्पन्न होता है, मिट्टी से ही उसका संवर्द्ध न होता है, मिट्टी का ही अनुगामी बनता है, और मिट्टी में ही व्याप्त होकर रहता है, वैसे ही सभी पदार्थ ईश्वर से उत्पन्न, संवद्धित और अनुगामिक होते हैं और अन्त में उसी में व्याप्त हो कर रहते हैं। (5) जैसे पुष्करिणी (बावड़ी) पृथ्वी से उत्पन्न (निमित) होती है, और यावत् अन्त में पृथ्वी में ही लीन होकर रहती है, वैसे ही सभी पदार्थ ईश्वर से उत्पन्न होते हैं और अन्त में उसी में ही लीन हो कर रहते हैं। (6) जैसे कोई जल का पुष्कर (पोखर या तालाब) हो, वह जल से ही उत्पन्न (निर्मित) होता है जल से ही बढ़ता है, जल का ही अनुगामी होकर अन्त में जल को ही व्याप्त करके रहता है, वैसे ही सभी पदार्थ ईश्वर से उत्पन्न संवद्धित एवं अनुगामी होकर उसी में विलीन होकर रहते हैं। (7) जैसे कोई पानी का बुबुद् (बुलबुला) पानी से उत्पन्न होता है, पानी से ही बढ़ता है, पानी का ही अनुगमन करता है और अन्त में पानी में ही विलीन हो जाता है, वैसे ही सभी पदार्थ ईश्वर से उत्पन्न होते हैं और अन्त में उसी में व्याप्त (लीन) होकर रहते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org