Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 398 सूत्रकृतांग-एकादश अध्ययन-मार्म 530. पण्डित मुनि अति-चारित्र विचातक) मान और माया (तथा अति लोभ और क्रोध) को (संसारवृद्धि का कारण) जानकर इस समस्त कषाय समूह का निवारण करके निर्वाण (मोक्ष) के साथ आत्मा का सन्धान करे (अथवा मोक्ष का अन्वेषण करे)। 531. (मोक्ष मार्ग परायण) साधु क्षमा आदि दविध श्रमण धर्म अथवा सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूप उत्तम धर्म के साथ मन-वचन-काया को जोड़े अथवा उत्तर धर्म में वृद्धि करे। तथा जो पाप धर्म (हिंसादि पाप का उपादान कारण अथवा पापयुक्त स्वभाव) है उसका निवारण करे / भिक्षु तपश्चरण (उपधान) में पूरी शक्ति लगाए तथा क्रोध और अभिमान को जरा भी सफल न होने दे। 532. जो बुद्ध (केवलज्ञानी) अतीत में हो चुके हैं, और जो बुद्ध भविष्य में होंगे, उन सबका आधार (प्रतिष्ठान) शान्ति ही (कषाय-मुक्ति या मोक्ष रूप भाव मार्ग) है, जैसे कि प्राणियों का जगती (पृथ्वी) आधार है। 533. अनगार धर्म स्वीकार करने के पश्चात् साधु को नाना प्रकार के अनुकूल प्रतिकूल परीषह और उपसर्ग स्पर्श करें तो साधु उनसे जरा भी विचलित न हो, जैसे कि महावात से महागिरिवर मेरु कभी विचलित नहीं होता। 534. आश्रवद्वारों का निरोध (संवर) किया हुआ वह महाप्राज्ञ धीर साधु दूसरे (गृहस्थ) के द्वारा दिया हुआ एषणीय-कल्पनीय आहार को ही ग्रहण (सेवन) करे / तथा शान्त (उपशान्त कषायनिर्वृत्त) रहकर (अगर काल का अवसर आए तो) काल (पण्डितमरण या समाधिमरण) की आकांक्षा (प्रतीक्षा) करे; यही केवली भगवान का मत है। -ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन-मोक्ष-साधन साधु-धर्म रूप भाव मार्ग की साधना-प्रस्तुत 7 सूत्रगाथाओं में साधु धर्म रूप भाव मार्ग की साधना के सन्दर्भ में कुछ सूत्र प्रस्तुत किये गए हैं-(१) भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित साधु धर्म को स्वीकार करके महाघोर संसार-सागर को पार करे, (2) आत्मा को पाप से बचाने के लिए संयम में पराक्रम करे, (3) साधु धर्म पर दृढ़ रहने के लिए इन्द्रिय-विषयों से विरत हो जाए, (4) जगत् के समस्त प्राणियों को आत्मतुल्य समझ कर उनकी रक्षा करता हुआ संयम में प्रगति करे, (5) चारित्र विनाशक, अभिमान आदि कषायों को संसार वर्द्धक जानकर उनका निवारण करे, (6) एकमात्र निर्वाण के साथ अपने मन-वचन-काया को जोड़ दे (7) साधु धर्म को ही केन्द्र में रखकर प्रवत्ति करे. (8) तपश्चर्या में अपनी शक्ति लगाए. (8) क्रोध और मान को न बढाए. अथवा सार्थक न होने दे, (10) भूत और भविष्य में जो भी बुद्ध (सर्वज्ञ) हुए हैं या होंगे, उन सबके जीवन और उपदेश का मूलाधार शान्ति (कषाय-मुक्ति) रही है, रहेगी। (11) भावमार्ग रूप व्रत को स्वीकार करने के बाद परीषह या उपसगं आने पर साधु सुमेरु पर्वत की तरह संयम में अविचल रहे, (12) साधक गृहस्थ द्वारा प्रदत्त एषणीय आहार सेवन करे तथा शान्त रह कर अन्तिम समय में समाधिमरण की प्रतीक्षा करे। यह साधु धर्म रूप भाव मार्ग प्रारम्भ से लेकर अन्तिम समय तक की साधना है।" ॥मार्ग : ग्यारहवाँ अध्ययन समाप्त / / 11 सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक 205-206 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org